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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन के स्वामी को कल्याणप्रद होते हैं ।७४ प्रश्वशास्त्र में प्रावों का विस्तार से अलग-अलग फल बताया है (पृ० २६-२७) । कामकृत अश्व - जिन अश्वों का ललाट विशाल, मुंह पागे को झुका हा, चमड़ी पतली, आगे के पैर स्थूल, जंघाएँ लम्बी, पीठ या बैठने का स्थान चौड़ा तथा पेट कृश होता है, वे अश्व इष्टफल देने वाले होते हैं ।७५ वाहन योग्य अश्व __ मेघ के सदृश वर्ण, मेघ के घोष के समान हषित, गज की क्रीड़ा की तरह गति, घृत की तरह गन्ध वाले तथा माला और विलेपनप्रिय अश्व वाहन योग्य होते हैं ।७६ अश्व-प्रशस्ति । युद्ध रूपी गेंद खेलने में आसक्त, शत्रसैन्य को रोकने में परिघा के समान तथा समस्त पृथ्वीमण्डल के अवलोकन की दृष्टि वाले अश्व युद्धकाल में मनोरथ की सिद्धि करने वाले होते हैं।
अन्यूनाधिक देह ( न अधिक छोटे न अधिक बड़े ), सुघड़ शरीर, सुशिक्षित तथा अच्छी तरह कसे हुए घोड़े वांछित फल देने वाले होते हैं । ७४. अहोनाविच्छिन्नाविचलितप्रदक्षिणवृत्तिभिर्देवमणिनिःश्रेणिश्रीवृतरोचमानादि. नामभिरावतः शुक्तिमुकुलावलीढकादिभिश्च तद्विशेषैराश्रितोचितप्रदेशम् ।
-यश° पृ० ३१० तुलना--आवर्तशुक्तिसंघातमुकुलान्वयलोढकम् ।।
शतपादी पादुकार्धपादुका चाष्टमी स्मृता ॥ आवर्ताकृतयश्चैता अष्टौ संपरिकीर्तिताः ।-अश्वशा० २३१-२ एते स्वस्थानस्थाः प्रदक्षिणा: सुप्रभाः शस्ताः।
एतैर्विनातुरंग: स्वल्पायुः पापलक्षणरत्वशुभः ।।-वही, ३४.८ अहीन = शस्ता, अविचलित- स्वस्थानस्थ, अविछिन्न = सुप्रभा ७५. विशालभाला बहिरानतास्याः सूक्ष्मत्वचः पीवर बाहुदेशाः । ___ सुदीर्घजंघा पृथुपृष्ठमध्यास्तनूदरा कामकृतास्तुरंगाः ।।-यश० पृ. ३१४ ७६. जीमूतकान्तिर्घनघोषहेषा करोन्द्रलीलागतिराज्यगन्धः ।
प्रियः परं माल्यविलेपनानामारोहणास्तुरगो नृपस्य ॥-वही, पृ. ३१५ तुलना-जीमूतवर्णा घनघोषहषी मध्वाज्यगन्धो गजहंसगामी । प्रियश्च माल्यस्य विलेपनस्य सोऽप्यश्वराजो नृपवाहनं स्यात् ॥
-अश्व० १०६।३६
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