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________________ १८५ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन अनूक (पु?)-हंस, वानर, सिंह, गज और शार्दूल के समान पुट्ठों वाले अश्व विजयप्रद होते हैं ।७० वृत्ति या पुण्ड-प्रपारण या कान के नीचे जो सफेद छपके होते हैं वे वृत्ति या पुण्ड्र कहलाते हैं । अश्वों में ध्वज, हल, कलश, कमल कुलिश ( वज्र) अर्धचन्द्र, चक्र, तोरण तथा तरवारि के सदृश वृत्तियाँ या पुण्ड्र श्रेष्ठ माने जाते हैं।७१ समुद्र में प्रतिबिंबित चन्द्र के सदृश पुण्ड्र जिस अश्व के ललाट पर होता है, उस अश्व का स्वामी राजा होता है । ७२ ___ आवर्त-अश्वों के वक्ष, बाहू, ललाट, शफ ( टाप ), कर्णमूल तथा केशान्त (ग्रीवा के दोनों ओर ) में शुक्ति की तरह के आवर्त प्रशस्त माने जाते हैं।७३ देवमणि, निःश्रेणी, श्रीवृक्ष, रोचमान, शुक्ति, मुकुल, अवलीढ आदि पावर्त होते हैं। ये अहीन, अविच्छिन्न, अविचलित और प्रदक्षिणा वृत्तिवाले होने पर अश्व ७०. हंसप्लवंगपंचास्य द्विपशार्दूलसन्निभैः। मिनद्रवः क्षितीन्द्राणामानूकैविजयप्रदाः॥ -यश० पृ०३४ ७१. ध्वजहलकलशकुशेशयकुलिशशशांकार्धचक्रसमाः।। तोरणतरवारिनिभास्तुरगेऽङ्गजवृत्तयः श्रेष्ठाः ।।-यश. पृ. ३४१ तुलना-प्रपाणावं तु कर्णावः श्वेतं श्वेततरं च यत् । तत् पुण्ड्रमितिविज्ञेयं तस्य संस्थानतः फलम् ।। कमलदलकलशहलमुसलपताकाध्वजांकुशादर्शः। श्रीवृक्षछत्रशंखस्वस्तिकभृगारवज्रनिभैः । चामरकूर्माष्टर पदवेदीखड्गोपमैः हयाः। पुण्ड्र कथयन्ति जयं भतुः विभवं पुत्रांश्च पौत्रांश्च ॥-अश्व• ४२ ७२. अमृतजलनिधिप्रतिबिम्बितेन्दुसंवा दिना निटिलपुण्ड्केण कथयन्तमिव सकलायामिलायामवनिपालस्यैकातपत्रवर्यम् ।-यश• पृ०३१० तुलना-चन्द्रार्धचन्द्रांदनकरतारावद्द्योतते ललाटं तत् । यस्य तुरगस्य भवेत् तस्य स्वामी भवेद् राजा ॥-प्रश्व० ४४११० ७३. वक्षसि वाह्वोरलिके शफदेशे कर्णमूल योश्चैव । भावर्तास्तुरगाणां शस्ता: केशा तयोस्तथा शुक्तिः ।। -यश. पृ०३१४ तुलना-आवर्तः पूजितो नित्यं शिरोमध्ये व्यवस्थितः । __स्थानमेकं तु विशेयं स्थाने द्वे कर्णमूलयोः॥-अश्व० २५, १४ श्रीवृक्षो वक्षसि प्रोक्तो ह्यावत: पंचभिर्भवेत् । अन्ये द्वे वक्षसि स्थाने चतुर्भिस्त्रिभिरेव च ॥ वाह्वोः स्थानद्वयं प्रोक्तं तत्रावर्तदयं विदुः । द्वे चोपरन्ध्रयोः स्थाने द्वौ स्थितौ रोमजी तयोः।। -अश्व० २५ २६, १६-१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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