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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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(७) इभ (४९७, ४९९, ५०३) (८) मतंगज (३०६) (९) वारण (२९९, ३०२, ३०४, ४९७) (१०) द्विरद (२९, ४८५, ४९५, ४९८) (११) द्विप (२९, ४८६) (१२) मृग (४९४) (१३) सामज (३१, ३५३, ४८४, ४८६, ४८८, ४९१) (१४) सिन्धुर (३०४) (१५) करटी (१७, ४९, ३०१, ४९९) (१६) वेदण्ड (२६१, ४९४) (१७) संकीर्ण (४९४) (१८) स्तम्बेरम (५०५) (१९) कुंजर (४९१, ४६४, ५०५) (२०) रदनि (४९८) (२१) कुंभी ५०३) (२२) भद्र (४६२) (२३) मन्द (४९३) (२४) शुण्डाल (३०५) (२५) सारंग (३४९) (२६) वामन (१९६ उत्त०) (२७) दन्ति (१९४ उत्त०) इनमें से निम्नलिखित पन्द्रह नाम हस्त्यायुर्वेद में भी आये हैं
(१) हस्ती, (२) दन्ति, (३) गज, (४) नाग, (५) मातंग, (६) कुंजर, (७) करि, (८) इभ, (९) मतंगज, (१०) वारण, (११) द्विरद, (१२) द्विप, (१३) मृग, (१४, सामज, (१५) अनेकप।
६३. हस्ती दन्ती गजो नागो मातंगः कुंजरः करी ।
इभा मतंगजश्चैव वारणो द्विरदद्विपः ॥ मृगोऽथ सामजश्चैव तथा चानेकपः स्मृतः । इति पंचदशैतानि नामान्युक्तानि पण्डितैः ॥ -हस्त्यायुर्वेद, पृ० ४५३, श्लो. १८, १९
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