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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
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उषःकाल में जागे हुए प्रसन्न इन्द्रिय और शरीर वाले गज का प्रातः काल दर्शन करने से, सूर्य के दर्शन की तरह दुःस्वप्न, दुष्टग्रह तथा दुष्टचेष्टा का नाश होता है । जो नृप यज्ञ - दीक्षित तथा जिसके कानों में मन्त्रोच्चार किया गया है, ऐसे गज की पूजा करते हैं, उनके मंगल को तथा शत्रु के नाश को गज अपने मद, वृहित, कान्ति, चेष्टा तथा छाया इत्यादि के द्वारा व्यक्त करता है ( पृ० २९९ से ३०१) । गजशास्त्र के कतिपय अन्य विशिष्ट शब्द
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वल्लिका (३०, ५०० ) = लोहे की सांकल
वाहरिका (३०) आलानस्तंभ (३०) अर्गला (३१)
निकाच (३१)
दमकलोक (४८५)
स्थापना (४८५)
वीत (५०० ) सृरिण (५०० )
वंश (५०१)
कल्पना (५०५)
दान (५०३ ) हस्त (४८४, ५०३ ) बमुथु (२७)
= पिछाड़ी लगाने की खूँटी = हाथी को बाँधने का खंभा
= आगर ( लंबी लकड़ी )
- शरीर बाँधने की रस्सी
= गज शिक्षक
== गज शिक्षा के समय की गयी एक विशिष्ट विधि
=
= अंकुश का बार
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= अंकुश
-
=
- हाथी दौड़ने का मैदान, प्रधाव भूमि
खीसों का मढ़ना, इसे ही कोशारोपण भी कहते
=
हैं (५०६) ।
= मद
= सूँड़, इसे कर भी कहते हैं ( २८ ) ।
= सूँड़ के द्वारा उछाले गये जल करण
यशस्तिलक में हाथी के निम्नलिखित नाम आये हैं
(१) हस्ती (३०४, ३०२, २६८, ४९७ )
(२) गज (२९०, २९९, ३०२, ३०५, ३०६, ३०७, ४८२, ४८४, ४८८,
४६१, ४९७, ४९९, ५००, ५०१, ५०६ )
(३) नाग (२८८)
(४) मातंग (३०४)
(५) कुंजर (४६१, ४९४, ५०५)
(६) करि (२९, २१४, २५३), ३००, ३०१, ३०३, ३०५, ३०६, ४८२, ४८९, ४९६, ४९७, ४९८, ५०१, ५०५, ५०६
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