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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन (वाहलि), नर, नारद, राजपुत्र तथा गौतम का उल्लेख किया है ।६० इभचारी से प्रयोजन संभवतया पालकाप्य से है। पालकाप्य के चरित में गजों के साथ में संचरण की विशेषता का उल्लेख किया गया है । ६१ नीलकंठ ने मातंगलीला में एक प्राचार्य को 'मातंगचारी' कहा है (श्लो० ५), संभवतया वहाँ भी नीलकंठ का प्रयोजन पालकाप्य से ही है। सोमदेव ने यशोधर को गजविद्या में रोमपाद की तरह कहा है ( रोमपाद इव गजविद्यासु, २३६ )। अंग नरेश रोमपाद को पालकाप्य ने हस्त्यायुर्वेद की शिक्षा दी थी। हस्त्यायुर्वेद में इस प्रसंग का विस्तृत वर्णन है ।६२ गज-परिचारक गज-परिचारकों में सोमदेव ने निम्नलिखित पांच का उल्लेख किया है(१) अमृतगणाधिप या गज वैद्य (२९१), (२) महामात्र (३३३ हि०), (३) अनोकस्थ (३३३ हि.), (४) प्राधोरण (३०) तथा (५) हस्तिपक या लेसिक (४५ उत्त०)। गज शिक्षा ___ गजों को गजशिक्षाभूमि में (करिविनयभूमिषु, ४८२) ले जाकर शिक्षित किया जाता था । सोमदेव ने इसका विस्तार से वर्णन किया है (४८२ से ४९१)। गज-दर्शन और उसका फल सोमदेव ने लिखा है कि गजशास्त्र के अनुसार ब्रह्मा ने साम पदों का गायन करते हुये गणेश के मुँह की आकृति वाले गजों का निर्माण किया था। अतएव जो राजा ब्रह्मपुत्र गजों का पूजन-दर्शन करता है उसकी केवल युद्ध में विजय ही नहीं होती, प्रत्युत वह निश्चय ही सार्वभौम राजा होता है। इसलिए साम से उत्पन्न, शुभ लक्षण युक्त, दिव्यात्मा, समस्त देवों के निवासस्थान, कल्याण, मंगल और महोत्सव के कारण गजश्रेष्ठ को नमस्कार हो, यह कहकर नमस्कार करे । ६०. इभचारियाज्ञवल्क्यवाद्धलिनरनारदराजपुत्रगौतमादिमहामुनिप्रणीतमतंगजेतिह्य । -यश. पृ० २६१ ६१. दीर्घकालतपोवीर्यान्मौनमास्थायसुव्रतः । चरिष्यति गजैः सार्धम् ...। -गजशास्त्र, पृ० ११, श्लो० ७९ ६२. हरत्यायुर्वेद, आनन्दाश्रम सीरिज २६, मातंगलीला १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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