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________________ १७८ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन मदावस्थाएँ तथा उनका उपचार यशस्तिलक में हाथियों की सात मदावस्थाओं का वर्णन किया गया है— (१) संजाततिलका, (२) आर्द्रकपोलका, (३) अधोनिबन्धिनी, (४) गन्धचारिणी, (५) क्रोधिनी, (६) अतिवर्तिनी, (७) संभिन्नमदमर्यादा | ५४ संस्कृत टीकाकार ने इनके समर्थन में एक पद्य उद्धृत किया है ।५५ पालकाप्य के गजशास्त्र में किंचित् परिवर्तन के साथ उक्त नाम प्राये हैं तथा उनका विस्तार से वर्णन किया गया है । ५६ यशोधर महाराज के वसुमतितिलक, पट्टवर्धन, उद्धतांकुश, परचक्रप्रमर्दन, ग्रहितकुलकालानल, चर्चरीवतंस तथा विजयशेखर नामक गज क्रम से इन मदावस्थाओं में विद्यमान थे ।५७ उपचार - मदावस्थानों के उपचार के लिए यशस्तिलक में चिकित्सा का निम्नप्रकार बताया है (१) सोत्तालव हरण, (२) संचय, (३) व्यास्तार, (४) मुखवर्धन, (५) कटवर्धन, (६) कटशोधन, (७) प्रतिभेदन, (८) प्रवर्धन, (९) वर्णकर, (१०) गन्धकर, (११) उद्दीपन, (१२) हासन, (१३) विनिवर्तन, (१४) प्रभेदन । ५८ एक-एक मदावस्था के लिए क्रमशः दो-दो उपचार किये जाते थे । पालकाप्य ने गजशास्त्र में मद- चिकित्सा के यही प्रकार बताये हैं । " ५९ गजशास्त्र - विशेषज्ञ आचार्य गजशास्त्र के प्राचीन आचार्यों में सोमदेव ने इभचारी, याज्ञवल्क्य, वाद्धलि ५४. यश० सं० पू० ५० ४६५ ५५. संजाततिलकापूर्वा द्वितीयार्द्रकपोलका । तृतीयाधोनिबद्धा च चतुर्थीगन्धचारिणी ॥ पंचमक्रोधनी शेया षष्ठी चैव प्रवर्तिका | स्यात्संभिन्नकपोला च सप्तमी सर्वकालिका ॥ प्राहुः सप्तमदावस्था मदविज्ञानकोविदाः । सं० टी० पृ० ४६५ ५६. गजशास्त्र पृ० ११६, श्लोक ८३-१०४ १७. यश० पू० पृ० ४६५ २८. ५०४६५ ५६. वृहयैः कवलैर्वृ ष्यैस्तथा संचयकारकैः । विस्तारकारकैश्चान्यैमुखवर्धनकैरपि ॥ करवृद्धिकरैर्योगैः कटवृद्धिकरैरपि । प्रभेदनैर्बन्धनैश्च गन्धवर्णकरैस्तथा ॥ दोषोत्पादनकैः पिण्डैर्जातिधास्वनुसारतः । गजानुपचरेद्राजा प्रयलादन्नपानकैः ॥ - गजशास्त्र, पृ० १५४, श्लोक १३ १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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