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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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(५) स्थूल दृष्टि, (६) अल्पकान्ति, (७) शोकालु, (८) भार ढोने में असमर्थ, (६) हीन और दुर्बल शरीर तथा (१०) मृग के समान गमन करने वाला । ४७ पालकाप्य ने भी इसी प्रकार के लक्षण किचित् परिवर्तन के साथ बताये हैं । ४८
संकीर्ण - भद्र, मन्द और मृग जाति के गजों के कुछ-कुछ लक्षण जिसमें पाये जायें उसे संकीर्ण गज कहते हैं । ४९ सोमदेव ने लिखा है कि यशोधर की गजशाला में शारीरिक और मानसिक गुणों से संकीर्ण अनेक प्रकार के गज थे । ५० पालकाप्य के गजशास्त्र में अठारह प्रकार के संकीर्ण गज बताये गये हैं । ५१
यागनाग —— यशोधर के राज्याभिषेक के अवसर पर यागनाग का उल्लेख है । १२ यागनाग उस श्रेष्ठ गज को कहते थे जिसमें निम्नलिखित चौदह गुण पाये जायें
(१) कुल, (२) जाति, (३) अवस्था, (४) रूप, (५) गति, (६) तेज, (७) बल, (८) आयु, (९) सत्त्व, (१०) प्रचार, (११) संस्थान, (१२) देश, (१३) लक्षण, (१४) वेग १५३
४७ ये वारत्वयि बह्वलीकमनसः सेवाषु दुर्मेधसो, हस्वोरोमणयः करेषु तनवः स्थूलेक्षणाः शत्रवः । तैर्नाथाल्पतनुच्छविप्रभृतिभिः शोकालुभिर्दुमरैः,
संक्षिप्तैरणुवंशकैमृगसमं प्रायः समाचर्यते ॥ - यश वही, पृ० ४६४ ४८. कुशांगुलीवालधिवक्त्र मेढो. लघुदरः क्षामकपोलकण्ठः । विस्तीर्ण कर्णस्तनुदीर्घदन्तः स्थूलेक्षणो यस्स गजो मृगाख्यः ॥
४३. संकीर्ण त्रिगुणो मतः । - गजशास्त्र, पृ० ७१, श्लोक ४२ er fieeraj aवं थोव तु जो अणुहरइ हत्थी । रूपेण व सीलेण च सो संकिरणोत्ति पायव्वो ।
- गजशास्त्र, श्लो० ३२
-ठाणांग, अ० ४, उच्छे० २, सू० ३४८
२०. द्वारि तव देव बद्धाः संकीर्णाश्चेतसा च वपुषा च ।
शत्रव इव राजन्ते बहुभेदा: कुंजराश्चेते ॥ - यश० वही, पृ० ४३४
५१. गजशास्त्र पृ०७१, श्लोक ४२ से ७४
५२. यागनागस्य तुरगस्य च । - सं० पू० पृ० २८८
५३. कुलजातिवयोरूपैर चारवर्ष्मबलायुषाम् । सत्वप्रचारसंस्थानदेशलक्षण रंहसा || एषां चतुर्दशानां तु यो गुणानां समाश्रयः । स राज्ञो यागनागः स्याद्भूरिभूतिसमृद्धये ॥
- गजशास्त्र, पृ० २
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