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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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(२१-२४) बल, धर्म, वय और जव - उत्तम, मध्यम तथा श्रधम बल ।
(२५) अंश - ब्रह्मादि श्रंशों में से किस श्रंश वाला है ।
(२६) गति — कैसा चलता है ।
(२७) रूप-रूप कैसा है ।
(२८) सत्त्व - सत्त्व कैसा है ।
(२९) स्वर
(३०) अनूक
(३१) तालु
(३२) अन्तरास्य - मुँह का भीतरी भाग (३३) उरोमणि - हृदय
(३४) विक्षोभकटक -- श्रोणिफलक (३५) कपोल
(३६) सृक्व (३७) कुम्भ – सिर
(३८) कन्धरा - ग्रीवा (३६) केश
(४०) मस्तक
(४१) आसनावकाश - बैठने का स्थान (पीठ) (४२) अनुवंश - रीढ़
(४३) कुक्षि- काँख
(४४) पेचक — पूंछ का मूल भाग
(४५) वालधि - पंछ
(४६) पुष्कर - शुण्डाग्रभाग
(४७) अपर-पुट्ठ (४८) कोश - भेद
करिकलाभ नामक बन्दी ने जो चौबीस पद्य पढ़े उनमें भी गजशास्त्र सम्बन्धी कई सिद्धान्त प्रतिफलित होते हैं ।
गजोत्पत्ति
गजोत्पत्ति के सम्बन्ध में यशस्तिलक में तीन पौराणिक तथ्यों का उल्लेख हुआ है
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