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________________ १७२ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन आयोधनाग्रेसर की तरह मनस्वी, अनाधू न(अल्पभोजी) की तरह सुभग तथा अन्य गुणरत्नों की भी खान है।' इस विवरण के बाद करिकलाभ नामक बन्दी ने गजप्रशंसापरक चौबीस पद्य पढ़े। उपर्युक्त वर्णन में गज-शास्त्र सम्बन्धी अनेक सिद्धान्तों की जानकारी दी गयी है । गजशास्त्र में गज के निम्नलिखित बाह्य और अंतरंग गुणों का विचार किया जाता है (१) उत्पत्ति-स्थान-किस वन में पैदा हुआ है। (२) कुल-ऐरावत आदि किस कुल का है। (३) प्रचार–सम या विषम कैसा प्रचार है, अर्थात केवल सम प्रदेश में गमन कर सकता है या विषम में भी। (४) देश-किसी देश विशेष में ही रह सकता है या कहीं भी। (५) जाति-भद्र, मन्द, मृग आदि में से किस जाति का है। (६) संस्थान-शारीरिक गठन कैसा है। (७-६) उत्सेध, आयाम, परिणाह-ऊँचाई, लम्बाई तथा मोटाई कैसी है। (१०) आयु-आयु की द्वादश दशाओं में से किसमें है (दस वर्ष की एक दशा होती है, सं० टी०)। (११) छवि-शरीर में स्वायत-व्यायत (ऊँची तथा तिरछी) बलि रहित छवि (त्वचा) है। (१२) वर्ण-शुद्ध, व्यामिश्र तथा अन्तर्वर्ण के तीन-तीन भेदों में से कौन सा वर्ण है। (१३) प्रभा-प्रभा कैसी है। (१४) छाया-पार्थवी, औदकी, आग्नेयी, वायव्य तथा तामसी छाया में से कौनसी छाया है। (१५) आचार-कायगत प्राचार कैसा है। (१६) शील-मनोगत शील (स्वभाव) कैसा है । (१७) शोभा-लोहित, प्रतिच्छन्न, पक्षलेपन, समकक्ष; समतल्प, व्यतिकर्ण तथा द्रोणिका (सं० टी०) में से कौन सी है । चौथी शोभा श्रेष्ठ मानी जाती है। (१८) आवेदिता-अर्थवेदिता। (१६-२०) लक्षण-व्यंजन-कर, रदन आदि लक्षण तथा विन्दु, स्वस्तिक आदि व्यंजन (सं० टी०) कैसे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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