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________________ १६९ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन . . बाणभट्ट तथा उनकी कादम्बरी का एक स्थान पर और भी उल्लेख है। कादम्बरी से एक वाक्य भी उद्धृत किया गया है । माघ का भी एक बार उल्लेख है। यशोधर को माघ के समान बताया है।३१ भर्तृहरि के नीतिशतक और शृङ्गारशतक से एक-एक पद्य बिना उल्लेख के उद्धृत किया गया है।३२ जिन कवियों के विषय में हमें अन्यत्र जानकारी नहीं मिलती ऐसे कवियों में निम्नलिखित उल्लेख्य हैं ग्रहिल के नाम से शिव-स्तुति रूप दो पद्य (पृ० २५५ उत्त०) उद्धृत हैं। नीलपट के नाम से (पृ० २५२ उत्त०) एक पद्य उद्धृत है । सम्भवतः यह नीलपट सदुक्तिकर्णामृत में उल्लिखित नीलभट्ट हैं। वररुचि के नाम से (पृ० ९९ उत्त०) एक पद्य उद्धृत है। यद्यपि यह पद्य निर्णयसागर द्वारा प्रकाशित भर्तृहरि के नीतिशतक में पाया जाता है, किन्तु वास्तव में यह नीतिशतक का प्रतीत नहीं होता, क्योंकि एक तो अन्य संस्करणों में भी नहीं है, दूसरे जब सोमदेव को भर्तृहरि और उनके साहित्य की जानकारी थी तो वे भर्तृहरि का पद्य वररुचि के नाम से क्यों उद्धृत करते। अन्य उल्लेख एक पद्य में त्रिदश, कोहल', गणपति, शंकर, कुमुद तथा कैकट का उल्लेख है ।३३ इनके विषय में अन्यत्र कोई जानकारी अभी नहीं मिलती। दार्शनिक और पौराणिक साहित्य दार्शनिक और पौराणिक साहित्य के अनेक उल्लेख यशस्तिलक में आये हैं । प्रो० हन्दिकी ने इनका विस्तार से विवेचन किया है, इसलिए उसे यहाँ पुनरुद्धृत नहीं किया गया। ३०. आहारः साधुजनविनिन्दितो मधुमांसादिरिति...बाणेन।-पृ. १०१ उत्त. ३१. सुकविकाव्यकथाविनोददोहदमाघ । ३२. स्त्रीमुद्रां झषकेतनस्य-इत्यादि नमस्यामोदेवान्ननुहतविधे, इत्यादि । -प० २१२ उ० ३३. वृत्तिच्छेदस्त्रिदशविदुषः कोहलस्यार्थहान निग्लानिर्गणपतिकवेः शंकरस्याशुनाशः । धर्मध्वंसः कुमुदकृतिन: कैकटेश्च प्रवास: पापादस्मादिति समभवद्देव देशे प्रसिद्धिः ।।-पृ०४५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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