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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्यबन प्रसंगों पर उनमें से कई का उल्लेख है। सोमदेव ने यशोधर को चन्द्रायणीश की तरह अपरकलाओं में निष्णात कहा है । २८ सम्भवतः अपर कलाओं से तात्पर्य यहाँ ६४ कलाओं से है। पत्रच्छेद
चौसठ कलाओं में पत्रच्छेद भी एक कला मानी जाती है। पत्तों में कैंची से तरह-तरह के नमूने काटना पत्रच्छेद है। वात्स्यायन ने कामसूत्र ( १।३।१६ ) में इसे विशेषकच्छेद्य कहा है। विशेषकर प्रणय-प्रसंगों में इस कला का उपयोग किया जाता था । वात्स्यायन ने लिखा है-पत्रच्छेद्य में अपने अभिप्राय के सूचक मिथुन का अंकन करके प्रेमी या प्रेमिका के पास भेजना चाहिए । २९ भोगावलि या राजस्तुतिविद्या ___राजा की स्तुति में लिखी गयी प्रशंसात्मक कविता भोगावलि, विरुदावलि या रंगघोषणा कहलाती है। यशस्तिलक में भोगावलि का तोन बार उल्लेख है (पृ० २४९, ३५१, ३९९ )। राजदरबारों में भोगावली पाठक हुआ करते थे। काव्य और कवि
यशस्तिलक में सोमदेव ने बीस से भी अधिक महाकवियों का उल्लेख किया है-ऊर्व, भारवि, भवभूति, भर्तृहरि, भर्तृ मेण्ठ, कण्ठ, गुणाढ्य, व्यास, भास, वोस, कालिदास, बाण, मयूर, नारायण, कुमार, माघ और राजशेखर । इनमें कईएक कवि जितने प्रसिद्ध और परिचित हैं उतने ही कई-एक अप्रसिद्ध और अपरिचित। नारायण सम्भवतः वेणीसंहार के कर्ता भट्टनारायण हैं और कुमार जानकीहरण के कर्ता कुमारदास। भास के विषय में निश्चित रूप से कहना कठिन है कि ये प्रसिद्ध नाटककार भास हैं अथवा अन्य । भास का महाकवि के रूप में एक अन्य प्रसंग (पृ. २५१ उत्त० ) में भी उल्लेख है और उनका एक पद्य भी उद्धृत किया है।
कण्ठ कवि का प्राचीन कवियों में कोई पता नहीं चलता। क्षीरस्वामीकृत क्षीरतरंगिनी में कण्ठ को संस्कृत धातु विशेषज्ञ के रूप में अनेक बार उद्धृत किया है । सम्भव है ये यही कण्ठ महाकवि हों। ऊर्व सम्भवतः वल्लभदेवकृत सुभाषितावलि में उल्लिखित और्व हैं।
२८. चन्द्रायणीश इव अपरास्वपि कलासु ।-पृ. २३७ २६. पत्रच्छेद्य क्रियायां च स्वाभिप्रायसूचकं मिथुनमस्या दर्शयेत् ।-३।४।"
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