________________
यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
अन्य प्रसंगों में चारायण, निमि, धिषरण तथा चरक के भी उल्लेख हैं । इन विद्वानों के वैद्यक ग्रन्थ दशमी शती में उपलब्ध थे और उनका पठनपाठन भी होता था । स्वास्थ्य, रोग और उनकी परिचर्या परिच्छेद में इनके विषय में और भी जानकारी दी गयी है ।
संसर्गविद्या या नाट्यशास्त्र
भरत और उनके नाट्यशास्त्र का उल्लेख यशस्तिलक में कई बार आया है । एक श्लेष में नाट्यशास्त्र को सोमदेव ने संसर्गविद्या कहा है ( भावसंकरः संसर्गविद्यासु, पृ० २०२ ) । श्रीदेव और श्रुतसागर दोनों ने ही संसर्गविद्या का अर्थ भरत अर्थात् नाट्यशास्त्र किया है । कला परिच्छेद में भरत तथा नाट्यशास्त्र के उल्लेखों के विषय में विचार किया गया है ।
चित्रकला तथा शिल्पशास्त्र
चित्रकला तथा शिल्पशास्त्रविषयक उल्लेख भी यशस्तिलक में यत्र-तत्र श्राये हैं । कला और शिल्प अध्याय में उनका विवेचन किया गया है ।
कामशास्त्र
कामशास्त्र को सोमदेव ने कन्तुसिद्धान्त कहा है और दत्तक को उसका विशेषज्ञ बताया है ( दत्तक इव कन्तुसिद्धान्तेषु, वही ) । वात्स्यायन ने कामसूत्र में दत्तक का उल्लेख किया है ।
सोमदेव ने कामसूत्र का दो बार और भी उल्लेख किया है । २६ वास्तव में कामसूत्र में वर्णित विभिन्न चेष्टाओं तथा कामक्रीड़ाओं आदि का विवरण यशस्तिलक की अनेक उपमा - उत्प्रेक्षाओं तथा श्लेषों में आया है । रति - रहस्य और उसकी रत्नदीप टीका
१६७
एक श्लेष में सोमदेव ने कोकककृत रतिरहस्य और उस पर रत्नदीप नामक टीका का उल्लेख किया है । २७
चौसठ कलाएँ
यशस्तिलक में चौसठ कलाओं का एक साथ तो उल्लेख नहीं है, किन्तु विभिन्न
२६. न क्षमश्चिर परिचितकामसूत्रायाः । पृ० ४५ हि० ङ्गारवृत्तिभिरुदाहृत कामसूत्रम् - १।७३
२७. चरणनखसंपादितरतिरहस्यरत्नदीपविरचनैः । पृ० २२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org