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________________ १६६ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन याज्ञवल्क्य, वाद्धलि (वाहलि ), नर, नारद, राजपुत्र तथा गौतम का उल्लेख किया है । २४ दुर्भाग्य से इनमें से किसी का भी स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं मिलता, पर सोमदेव के उल्लेख से यह महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है कि इन सभी के गजशास्त्र उपलब्ध थे । अश्वविद्या और रेवत रैवत अश्वविद्या - विशेषज्ञ माने जाते थे, इसीलिए सोमदेव ने यशोधरा को अश्वविद्या में रैवत के समान कहा है । यशस्तिलक के दोनों टीकाकारों ने रैवत को सूर्य का पुत्र बताया है । मार्कण्डेयपुराण (७५२४) में भी रैवत या वन्त को सूर्य और बडवा का पुत्र कहा गया है तथा गुह्यक मुख्य और अश्ववाहक बताया है । अश्वकल्याण के लिए रैवत की पूजा भी की जाती है ( देखिए, जयदत्त -- अश्व चिकित्सा, बिब० इंडिका १८८६, ८, पृ० ८५ ८ ) । अश्वविद्या विशेषज्ञों में सोमदेव ने शालिहोत्र का भी उल्लेख किया है ( १७३ हि० ) । शालिहोत्रकृत एक संक्षिप्त रैवत-स्तोत्र प्राप्त होता है ( तंजौर ग्रन्थागार, पुस्तक सूची, पृ० २०० तथा कीथ का इंडिया आफिस केटलाग पृ० ७५८)। २५: रत्नपरीक्षा और शुकनाश सोमदेव ने यशोधर को रत्नपरीक्षा में शुकनाश की तरह कहा है । श्रीदेव तथा श्रुतसागर दोनों ने शुकनाश का अर्थं अगस्त्य किया है । रत्नपरीक्षा का एक उद्धरण भी यशस्तिलक में आया है " न केवलं तच्छुभकुन्तृपस्य मन्ये प्रजानामपि तद्धिभूत्यै । यद्योजनानां परत: शताद्धि सर्वाननर्थान् विमुखी करोति ॥ " यह पद्य बुद्धभट्टकृत रत्नपरीक्षा में उपलब्ध होता है । गरुडपुराण ( पूर्व खण्ड श्रध्याय ५ से ८० ) में यह ग्रन्थ शामिल है। भोजकृत युक्तिकल्पतरु में उद्धृत गरुडपुराण के उद्धरणों में भी यह पद्य मिलता है । वैद्यक और काशिराज सोमदेव ने यशोधर को शरीरोपचार में काशिराज की तरह कहा है। श्रुतसागर ने काशिराज का अर्थ धन्वन्तरि किया है । २४. पृ० २६१ २१. राघवन् - ग्ली० फ्रा० यश०, वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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