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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
गणितशास्त्र
गणितशास्त्र को सोमदेव ने प्रसंख्यान शास्त्र कहा है । पारिरक्षक प्रसंख्यानोपदेश के अधिकारी विद्वान् माने जाते थे । श्रीदेव तथा श्रुतसागर दोनों ने परिरक्षक का अर्थ यति या संन्यासी किया है । सम्भवतः पाणिनि द्वारा उल्लिखित भिक्षुसूत्र के कर्ता का नाम पारिरक्षक रहा हो ।
प्रमाणशास्त्र और अकलंक
सोमदेव ने यशोधर को प्रमाणशास्त्र में अकलंक की तरह कहा है । अकलंक जैन - न्याय या प्रमाणशास्त्र के प्रतिष्ठापक विद्वान् माने जाते हैं । ८वीं शती के यह एक महान् श्राचार्य थे । अनेक ग्रन्थों तथा शिलालेखों में अकलंक के उल्लेख मिलते हैं । तस्वार्थवार्तिक, प्रष्टशती, लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धि - विनिश्चय तथा प्रमाणसंग्रह अकलंक की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं । सौभाग्य से सभी के समालोचनात्मक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । २०
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राजनीतिशास्त्र
सोमदेव ने यशोधर को नीतिशास्त्र और व्यूहरचना में कवि की तरह कहा है । २१ श्रीदेव ने कवि का अर्थ बृहस्पति तथा श्रुतसागर ने शुक्र किया है ।
एक अन्य प्रसंग में गुरु, शुक्र, विशालाक्ष, परीक्षित, पाराशर, भीम, भीष्म तथा भारद्वाजरचित नीतिशास्त्रों का उल्लेख है । २२ दुर्भाग्य से अभी तक इनमें से किसी का भी स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ, किन्तु सोमदेव के उल्लेख से यह सुनिश्चित है कि दशमी शती में सभी ग्रन्थ प्राप्त थे और उनका पठन-पाठन भी होता था ।
गजविद्या तथा रोमपाद
यशोधर को गजविद्या में रोमपाद की तरह कहा है । अंग नरेश रोमपाद को पालकाप्य मुनि ने हस्त्यायुर्वेद की शिक्षा दी थी । २ ३
रोमपाद के अतिरिक्त सोमदेव ने गजशास्त्रविशेषज्ञ आचार्यों में इभचारी,
२०. भारतीय ज्ञानपीठ काशी द्वारा प्रकाशित
२१. कविरिव राजराद्धान्तेषु, काव्य इव व्यूहरचनासु । - पृ० २३६ २२. गुरुशुक्र विशालाक्षपरीक्षितपाराशर भीमभोष्म भारद्वाजादिप्रणीत नीतिशास्त्रश्रवणसनाथम् । पृ० ४७१ २३. हस्स्यायुर्वेद, भानन्दाश्रम सीरीज २६, मातंगलीला १०
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