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परिणपुत्र या पाणिनि
सोमदेव ने यशोधर को परिणपुत्र की तरह पदप्रयोग में निपुण कहा है। श्रीदेव तथा श्रुतसागर दोनों ने ही परिणपुत्र का अर्थ पारिणनि किया है । अष्टाध्यायी के रचयिता पाणिनि की माँ का नाम दाक्षी था । सोमदेव के उल्लेखानुसार उनके पिता का नाम परिण या पारिण था । तेलुगु के श्रीनाथ और पेदन के ग्रन्थों में पाणिनि को पानिसुनु कहा है । १७
इस प्रकार यह यशस्तिलक का सन्दर्भ पाणिनि के सम्बन्ध में ज्ञात तथ्यों में एक और नयी कड़ी जोड़ता है ।
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
पूज्यपाद देवनन्दि और उनका जैनेन्द्र व्याकरण
पूज्यपाद का सोमदेव ने दो बार उल्लेख किया है । पूज्यपाद देवनन्दि का जैनेन्द्र व्याकरण प्रसिद्ध है । इनका समय पाँचवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना जाता है । जैनेन्द्र व्याकरण के अतिरिक्त पूज्यपाद कृत सर्वार्थसिद्धि प्रसिद्ध है । यह उमास्वातिकृत तत्त्वार्थ सूत्र की प्रथम संस्कृत टीका है ।
पूज्यपाद देवनन्दि एक अच्छे दार्शनिक भी थे, किन्तु व्याकरणाचार्य के रूप में वे और भी अधिक प्रसिद्ध हुए । एक स्वतन्त्र व्याकरण - सिद्धान्त-निर्माता के रूप में उन्हें माना जाता था और इसीलिए 'पूज्यपाद की तरह व्याकरण विशेषज्ञ' एक कहावत - सी चल पड़ी थी । श्रवरणवेलगोला के शिलालेखों में इस तरह के उल्लेख मिलते हैं । शक संवत् १०३७ के एक शिलालेख में मेघचन्द्र को पूज्य - पाद की तरह सर्वव्याकरण विशेषज्ञ कहा है । इसी तरह जैनेन्द्र और श्रुतमुनि को भी पूज्यपाद की तरह व्याकरणविशेषज्ञ कहा गया है । १८ स्वयं सोमदेव ने यशोधर को शब्दशास्त्र में पूज्यपाद की तरह कहा है ।
पतंजलि
पतंजलि का उल्लेख एक श्लेष में आया है । १९
१७. राघवन् - ग्लीनिग्ज फ्राम सोमदेव सूरीज यशस्तिलकचम्पू, दी जरनल ऑक दी गंगानाथ झा रिसर्च इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद, जिल्द १, भाग ३ मई १३४४
१८. सर्वव्याकरणे विपश्चिदधिपः श्री पूज्यपादः स्वयम् - श्लो० ३०
— जैनेन्द्र पूज्य ( पादः), श्लो० २३
- शब्दे श्री पूज्यपादः, श्लो० ४०
- जैन शिलालेख संग्रह, पृ० ६२, ११९, २०२
१६. शब्दशास्त्रविद्याधिकरणव्याकरणपतं जल । - पृ० ३१६, उत्त०
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