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थशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन इन्द्र और उनका ऐन्द्र व्याकरण
ऐन्द्र व्याकरण अब तक उपलब्ध नहीं हुआ, किन्तु कातन्त्र व्याकरण को ऐन्द्र व्याकरण के आधार पर रचा गया माना जाता है। इन्द्र का वैयाकरण के रूप में सर्वप्रथम उल्लेख तैत्तरीयसंहिता में आता है ।१० नैषधकार ने भी नैषध (१०।१३५) में इन्द्र का उल्लेख किया है। तेरहवीं शताब्दी के अन्त में चण्डपंडित ने भी इन्द्र का उल्लेख किया है।११
तिब्बती परम्परा में इन्द्रगोमिन् के इन्द्रव्याकरण की जानकारी मिलती है और नेपाल के बौद्धों में इसका पठन-पाठन बताया जाता है । १२ वास्तव में इन्द्रव्याकरण के विषय में अभी पर्याप्त छानबीन की आवश्यकता है। आपिशल और उनका आपिशलि व्याकरण
आपिशल का उल्लेख पाणिनि ने 'वा सुप्यापिशलेः' कहकर अष्टाध्यायी में किया है । महाभाष्य ( ४।२।४५, ४।१।१४ ) काशिका ( ६।२॥३६, ७।३।९५) तथा न्यास में भी प्रापिशल के कई उल्लेख आये हैं। आपिशल का अध्ययन करने वाली ब्राह्मणी प्रापिशला कहलाती थी।१३ आपिशल को पढ़ने वाले छात्र भी प्रापिशल कहलाते थे।१४ काशिका की वृत्ति (११३१२२ ) में जैनेन्द्र बुद्धि ने भी प्रापिशल का उल्लेख किया है। कातन्त्र सम्प्रदाय के व्याकरण में भी आपिशल का उल्लेख मिलता है ।१५ आपिशल का कोई ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं हुना है। चन्द्र और उनका चान्द्रव्याकरण
बौद्ध चन्द्रगोमिन् का चन्द्रवृत्तिक ही सोमदेव द्वारा उल्लिखित चान्द्रव्याकरण ज्ञात होता है। यह ५वीं शती की रचना मानी जाती है। लिपजिग से इसका प्रकाशन भी हो चुका है।१६ .
१०. वेलवलकर-सिस्टम्स ऑव संस्कृत ग्रामर, पृ० १. ११. तादृक्कृतव्याकरण : तादृकृतं ऐन्द्र व्याकरणम् । १२. विंटरनित्ल, उल्लिखित हन्दिकी।-यश. पृ० ४४३ १३. आपिशलमधीते ब्राह्मणी आपिशला ब्राह्मणी, महाभाष्य ४११७४ १४. अधीयतेऽन्तेवासिनरतेऽप्यापिशलाः।-प्रापिशलैर्वा छात्रा प्रापिशला इत ।
-काशिका ६।३६ १५. "द्वितीयैनेन" की टीका में दुर्गासिंह-आपिशलीयव्याकरण समयादीनां कर्म.
प्रवचनीयत्वं दृष्टमिति मतम् । ५६. वेलवलकर, वही पृ०५८
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