________________
१६२
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन अरुण की तरह रथविद्या में, परशुराम की तरह शस्त्रविद्या में, शुकनाश की तरह रत्नपरीक्षा में, भरत की तरह संगीतक मत में, त्वष्टकि की तरह चित्रकला में, काशीराज की तरह शरीरोपचार में, काव्य की तरह व्यूहरचना में, दत्तक की तरह कामशास्त्र में तथा चन्द्रायणीश की तरह अपर कलाओं में ।' __अन्य प्रसंगों में भी विभिन्न शास्त्र और शास्त्रकारों के उल्लेख हैं। सबका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
व्याकरण
व्याकरण शास्त्रकारों में सोमदेव ने इन्द्र, जैनेन्द्र, चन्द्र, प्रापिशल, पाणिनि तथा पतंजलि का उल्लेख किया है। इस प्रसंग में पणिपुत्र नाम भी आया है।
इनमें कुछेक नाम वर्तमान में अपरिचित से हो गये हैं मौर उनके शास्त्र भी उपलब्ध नहीं होते। वास्तव में ये सभी प्रचीन महान् वैयाकरण थे और सोमदेव के उल्लेखानुसार कम से कम दशमी शती तक तो इनके शास्त्रों का अध्ययनअध्यापन होता ही था। १०५३ ई० के मूलगुण्ड शिलालेख में चान्द्र, कातन्त्र, जैनेन्द्र शब्दानुशासन तथा ऐन्द्र व्याकरण और पाणिनि का उल्लेख है। तेरहवीं शती में वोपदेव ने अपने कविकल्पद्रुम के प्रारम्भ में आठ वैयाकरणों का उल्लेख किया है, जिनमें इन्द्र, चन्द्र, प्रापिशल, पाणिनि और जैनेन्द्र का नाम आता है। कल्पसूत्र की टीका में समयसुन्दरगणि (१७वीं शती) ने अठारह वैयाकरणों में इन्द्र और आपिशल को भी गिनाया है। यद्यपि बाद के इन उल्लेखों से यह कहना कठिन है कि सत्रहवीं शती तक उपर्युक्त सभी व्याकरण उपलब्ध थे. फिर भी इतना निश्चित है कि ये सब व्याकरण के महान् आचार्य माने जाते थे। सोमदेव ने जिनका उल्लेख किया है उनके विषय में किंचित् और जानकारी इस प्रकार है
८. प्रजापतिरिव सर्ववर्णागमेषु, पारिरक्षक इव प्रसंख्यानोपदेशेषु, पूज्यपाद इव
शब्दतिय षु, स्याद्रादेश्वर इव धर्माख्यानेषु, अकलंकदेव इव प्रमाणशास्त्रेषु, पणिपुत्र इव पदप्रयोगेषु, कविरिव राजराद्धान्तेषु, रोमपाद इव गजविद्याषु, रैवत श्व हयनयेषु, अरुण इव रथचर्यासु, परशुराम इव शब्दाधिगमेषु, शुकनाश इव रत्नपरीक्षासु, भरत इव संगीतकमतेषु, त्वष्टकिरिव विचित्रकर्मसु, काशिराज इव शरीरोपचारेषु, काव्य इव व्यूहरचनासु, दत्तक श्व कन्तुसिद्धान्तेषु, चन्द्रायणीश
इवापरास्वपिकलासु ।-पृ. २३६-३७ ६. एपिग्राफिया इंडिका, जिल्द १६, भाग २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org