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________________ परिच्छेद दस शिक्षा और साहित्य - शिक्षा और साहित्य विषयक सामग्री यशस्तिलक में पर्याप्त एवं महत्त्वपूर्ण है। बाल्यावस्था शिक्षा की उपयुक्त अवस्था मानी जाती थी। गुरुकुल प्रणाली शिक्षा का प्रादर्श था। मारिदत्त के माता-पिता उसकी छोटी अवस्था में ही संन्यस्त हो गये थे, इस कारण गुरुकुल में जाकर मारिदत्त की शिक्षा नहीं हो पायी थी।२ यशोधर की शिक्षा समान वय वाले सचिव पुत्रों के साथ हुई थी।३ विद्यार्थी के लिए यह आवश्यक था कि खूब मन लगाकर पढ़े, विनयपूर्वक रहे और नियम सम्पन्न हो। विद्याध्ययन समाप्त होने के बाद गोदान किया जाता था। शिक्षा के अनेक विषय थे। सोमदेव ने अमृतमति महारानी की द्वारपालिका को समस्त देशों की भाषा तथा वेष का जानकार कहा है ।६ प्राचार्य सुदत्त के संघ में जो विद्वान् मुनि थे उनमें कोई समस्त शास्त्रों के ज्ञाता थे, कोई पुराणों में पारंगत थे। कोई तर्कविद्या में निष्णात थे, कोई नव्यानव्यकाव्य में । कोई ऐन्द्र, जैनेन्द्र, चन्द्र, प्रापिशल, पाणिनीय आदि व्याकरण के पंडित थे।७ यशोधर ने जिन विद्याओं में नैपुण्य प्राप्त किया था उनका विवरण सोमदेव ने इस प्रकार दिया है-प्रजापति की तरह सब वर्गों में, पारिरक्षक की तरह प्रसंख्यान में, पूज्यपाद की तरह शब्दशास्त्र में, स्याद्वादेश्वर की तरह धर्माख्यान में, अकलंक की तरह प्रमाणशास्त्र में, परिणपुत्र की तरह पैदप्रयोग में, कवि की तरह राजनीति में, रोमपाद की तरह गजविद्या में, रैवत की तरह अश्वविद्या में, 1. बाल्यं विद्यागमैर्यत्र ।-पृ. १६८ २. कुलवृद्धानां च प्रतिपन्नपि वनतपोवनलोकत्वादसंजातविद्यावृद्धगुरुकुलोपासनः। -~पृ० २६ ३. सवयः सचिवकुलकृतानुशीलनः।-पृ० २३६ ४. स्वाध्यायधीनियमवान्विनयोपपन्नः।-पृ० २३७ ५. सकलविद्याविदाश्चर्यप्रवणनैपुण्यमहमाश्रितः परिप्राप्तगोदानावसरश्च ।-वही ६. निःशेषविषयभाषावेषविषणया ।-पृ० २५ उत्त. ७. पृ.८९-१० ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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