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. यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
गज-विद्या - यशस्तिलक में गज-विद्या विषयक प्रचुर सामग्री है । गजोत्पत्ति की पौराणिक अनुश्रुति, उत्तम गज के गुण, गजों के भद्र, मन्द, मृग तथा संकीर्ण भेद, गजों की मदावस्था, उसके गुण, दोष और चिकित्सा, गजशास्त्र के विशेषज्ञ आचार्य, गज परिचारक, गज-शिक्षा इत्यादि का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह वर्णन मुख्य रूप से तीन प्रसंगों में आया है
(१) मारिदत्त हाथियों के साथ खेला करता था (सामजैः सह चिक्रीड, ३१) । (२) यशोधर के पट्टबन्ध उत्सव पर अनेक गुण संयुक्त गज उपस्थित किया
गया (आकरस्थानमिव गुणरत्नानाम्, २९९)। (३) सम्राट् यशोधर ने स्वयं गजशिक्षाभूमि पर जाकर गजों को शिक्षित
किया (करिविनयभूमिषु स्वयमेव वारणान्विनिन्ये, ४८२)। हथिनि पर सवारी की (कृतकरेणुकारोहणः, ४९२), गजक्रीडास्थली में गजक्रीड़ा देखी (प्रधावधरणिषु करिकेलिरदर्शम्, ५०५ ) तथा दन्त-वेष्टन किया
(कोशारोपणमकरवम्, ५०६) । प्रथम प्रसंग में गजशास्त्र सम्बन्धी अनेक पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है।
यशोधर के पट्टबन्धोत्सव के लिए जो हाथी लाया गया उसका वर्णन निम्नप्रकार किया गया है (पृष्ठ २९१-२९९)
'हे राजन्, यह गज कलिंगवन में उत्पन्न, ऐरावत कुल, प्रचार से सम, देश से साधारण, जन्म से भद्र, संस्थान से समसम्बद्ध, उत्सेध (ऊर्वता), आयाम (दीर्घता) तथा परिणाह (वृत्तता) से सम-सुविभक्त शरीर, आयु से दो दशाओं को भोगता हुना, अंग से स्वायत-व्यायत छवि, वर्ण, प्रभा और छाया से आशंसनीय, आचार, शील, शोभा और आवेदिता से कल्याण, लक्षण और व्यंजन से प्रशस्त, बल, वर्म (शरीर), वय और वेग से उत्तम, ब्रह्मांश, गति, सत्त्व, स्वर और अनूक से प्रियालोक, विनायक (गणेश) की तरह मोटा-चौड़ा मुंह, तालु में अशोक पुष्प की तरह मरुण, अन्तर्मुख में कमलकोश की तरह शोण प्रकाश, उरोमणि, विक्षोभकटक, कपोल तथा सृक्व में पीन और उपचितकाय, सुप्रमाण कुंभ, ऋजु-पूर्ण तथा ह्रस्व कन्धरा, अलि के समान नीले और मेघ के समान घने तथा स्निग्ध केश, समसूद्गतव्यूढ मस्तक, अनल्प आसनस्थान, डोरी चढ़ाये गये धनुष की तरह अनुवंश (रीढ़), अजकुक्षि, अनुपदिग्ध पेचक, कुछ उठी हुई, जमीन को छूती हुई बैल की पूछ के समान पूंछ, अभिव्यक्त पुष्कर (शुण्डाग्रभाग), वराह के जघन के
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