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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन प्रचुर मात्रा में पायी है। सोमदेव ने पुष्प और पत्तों से बने निम्नलिखित आभूषणों का उल्लेख किया है १. अवतंसकुवलय३९.-कुवलय पुष्प को अवतंस के स्थान पर कान में पहना जाता था। आभूषणों के प्रकरण में लिखा जा चुका है कि यशस्तिलक में पल्लव, चम्पक, कचनार, उत्पल तथा कैरव के बने अवतंसों के उल्लेख हैं।४० २. कमलकेयूर -कमल को केयूर के स्थान पर पहना जाता था । केयूर का उल्लेख यशस्तिलक में दो बार आया है। एक स्थान पर लाल कमल में श्वेतकमल लगा कर केयूर बनाने का उल्लेख है। आभूषणों के प्रकरण में इस सम्बन्ध में विशेष लिखा जा चुका है। ३. कदलीप्रवालमेखला-सिन्धुवार की माला लगा कर केले के कोमल पत्तों की मेखला बनाई जाती थी। इसे कदलीप्रवालमेखला कहते थे ।४२ कटि के आभूषणों में मेखला का महत्त्वपूर्ण स्थान था। सोमदेव ने चार प्रकार के कटि के आभूषणों का वर्णन किया है जिसे आभूषणों के प्रसंग में लिख चुके हैं। ४. कर्णोत्पल ३- कान में पहने जाने वाले आभूषणों में अधिकांश फूल और पत्तों के ही बनाए जाते थे । उत्पल नीले कमल को कहते हैं । नीले कमल को कान में पहनने का रिवाज था। ५ कर्णपूर४४ -कर्णपूर का उल्लेख यशस्तिलक में चार बार हुआ है। उसमें से एक प्रसंग में मरुवे के फूल से बने करर्णपूर का उल्लेख है। कर्णपूर को देशी भाषा में कनफूल कहा जाता है । (कर्णपूर) कर्णफूल > कनफूल) अलंकारों के प्रकरण में इस सम्बन्ध में और भी लिखा है। ६. मृणालवलय-मृणाल के बने हुए वलय हाथों में पहनते थे। सोमदेव ने दो बार मृणालवलय का उल्लेख किया है।४५ ३६. ८1८ उत्त. ४०.५७२, हिन्दी ४५. वही, हिन्दी ४२. सिन्धुवारसर सुन्दरकदलीप्रवालमेखलेन, वही ५७१२ हिन्दी ४३. सं. पू. पृ०१५ ४४. कर्णपूरमरुवकोभेदसुन्दरगएडमण्डलामिः पृ. ३१६८ ४५.५७१ हिन्दी ३५६८, हिन्दी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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