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________________ १५८ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन ६. कर्पूर- (कर्पूरदलदन्तुरित, पृ० २८ उत्त०) (कर्पूरपरागरुचो, पृ० २१२) ७. चन्द्रकवल-(अमरसुन्दरीवदनचन्द्रकवला:, पृ० ३३८) (चिताभसितानि चन्द्र कवलाः, पृ. १५०) ८. तमालदलधूलि-(तमालदलधूलिधूसरितरोमराजिनि, पृ. ९ उत्त०) ९. ताम्बूल- (हस्ते कृत्य च ताम्बूलम्, पृ० ८१ उत्त०) १०. पटवास- (वनदेवतापटवासाः, पृ० ३३८) ११. पिष्टातक- (ककुभंगनालकप्रसाधनपिष्टातकचूर्णाः पृ० ३३८) (प्रसवपरागपिष्टातकितदिग्देवतासीमन्तसंतानम् , पृ० ९४) १२. मनःसिल-(मनःसिलाधूलिलीले; पृ० ४ उत्त०) १३. मृगमद- (मृगमदैरेष नैपालपालः, पृ० ४७०) । १४. यक्षकर्दम- (यक्ष कर्दमखचितजातरूपभित्तिनि, पृ. २८. उत्त०) यक्षकर्दम कपूर, कस्तूरी, अगुरु और कंकोल को मिलाकर बनाए गये अनुलेपन द्रव्य को कहते थे (अमरकोष २।६।१३३) । अमृतभति के अन्तःपुर की सुवर्ण-भित्तियों पर यक्षकर्दम का लेप किया गया था (यक्षकर्दमखचितजातरूपभित्तिनि, २८।२ उत्त०)। धन्वन्तरि ने कुंकुम, कस्तूरी, कपूर, चन्दन और अगुरु से बनी महासुगन्धि को यक्षकर्दम कहा है (उद्धत- अग्रवाल- कादम्बरी : एक सां० अध्ययन)। काव्यमीमांसा में इसे चतुःसमसुगन्धि कहा है (१८।१००)। दोहाकोश (पृष्ठ ५५) और पदमावत (२७६।४) में भी इसे चतुःसमसुगन्धि कहा है। १५. हरिरोहण-गोशीर्षचन्दन ( तपश्चर्यानुरागेणैव हरिरोहणेनांगरागम्, पृ० ८१ उत्त.) १६. सिन्दूर- (पृ० ५ उत्त०, पृ० ७८) पुष्प-प्रसाधन पुष्प, प्रसाधन-सामग्री का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। दक्षिण भारत में प्राचीन काल से ही पुष्प-प्रसाधन की कोमल कला चली आयी है। अभी भी वहाँ इसके अनेक रूप देखे जाते हैं। सोमदेव ने यशस्तिलक में दक्षिण भारतीय संस्कृति का विशेष चित्रण किया है। इसलिए सहज ही पुष्प-प्रसाधन सम्बन्धी सामग्री भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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