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________________ यशस्तिलककालोन सामाजिक जीवन १५७ रूप से सीमन्त (माँग) पर ध्यान दिया जाता था। मस्तक के बीच से केशों को द्विधा विभक्त करके इस तरह सँवारा जाता था जिससे बीच में राजपथ के समान साफ और सीधी मॉग दिखने लगे। माँग या सीमन्त निकालने के बाद उसमें विभिन्न पुष्पों से निकाले गये पराग को सिन्दूर का स्थानीय करके भरा जाता था। सोमदेव ने प्रियालकमंजरी के कृणों को कणिकार के केसर में मिलाकर सीमन्त को प्रसाधित करने का वर्णन किया है ।३५ वेणिदण्ड- वेरिण दण्ड का एक बार उल्लेख है।३६ बालों को संवारकर या बिना संवारे ही इकहरी चोटी बाँधना वेणोदण्ड कहलाता था। जूट-बालों को ऊपर को समेट कर कपड़े की पट्टी से बाँधना जूट कहा जाता था। बालों को इकट्ठा करके बाँधने को आजकल भी जूड़ा बाँधना कहा जाता है। सोमदेव ने लिखा है कि दाक्षिणात्य सैनिक उत्कट जूट बाँधे थे जो गेड़े के सींग की तरह लगता था।३७ कबरी--कबरी का एक बार उल्लेख है।३८ बालों को साधारणतया संभालकर बाँधने को कबरी कहते थे। प्रसाधन-सामग्री यशस्तिलक में प्रसाधन-सामग्री की जानकारी इस प्रकार दी है-- १. अंजन - (लोचनांजनमार्गेषु, पृ० ९, उत्त०) २. कजल-( नेत्रः कजलपांसुलैः, पृ० ६११), (नेत्रः कजलितः, वही, सं० पृ० ६१६) ३. अगुरु-१) कृष्णागुरु-(कृष्णागुरुपिंजरितकर्णपालीषु, पृ० ९ उत्त०) (२) कालागुरु-(कालागुरुधूपधूमधूसरित, वही, पृ० २८) ४. अलक्तक--(यत्रालक्तकमण्डनं विरचितम्, पृ० १२६) (यावकपुनरुक्तकान्तिप्रभावेषु पादपल्लवेषु, पृ० ९ उत्त०) ५. कुंकुम- (कुंकुमपंकरागे, पृ० ६१) (काश्मीरैः कीरनाथः, पृ० ४७०) (घुसृणरसारुणित, पृ० २८ उत्त०) ३५. प्रियालकमंजरीकणकल्पितकर्णिकार केसरविराजितसीमन्तसंततिना। १० १०५ ३६. शौर्यश्रीवेणीदण्डानुकारिणा।-पृ० २७ ३७. पृ० ४६१ ३८. कबरीनिगूढेनासिपत्रेण ।-१० १५३, उत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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