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________________ १५६ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन धम्मिल्लों के खुल जाने का वर्णन किया है | २० सोमदेव ने एक प्रसंग में पाटली के पुष्पों से सुगन्धित धम्मिल्ल का उल्लेख किया है । २९ धम्मिल्लविन्यास की इस कला का चित्रण प्रजन्ता के चित्रों में भी हुआ है । कुछ चित्रों में स्त्री मस्तकों पर बाँधे हुए केशों का एक बड़ा जुड़ा मिलता है । ऊपर तीन जुड़े या राजघाट (वाराणसी) से प्राप्त खिलौनों में धम्मिल्लविन्यास के अनेक प्रकारों का अंकन हुआ है । कुछ खिलौनों में दाएँ-बाएँ और त्रिमौलि विन्यास पाया जाता है । किन्हीं मस्तकों में सिर के ऊपर शृङ्गाटक या सिंघाड़े की तरह त्रिमौलि की रचना करके माँग के बीच में सिरमौर, माथे पर मौलिबन्ध और उसके नीचे दोनों ओर अलकावली छिटकी हुई दिखाई गयी है । १ गुप्तकाल की पत्थर की मूर्तियों में धम्मिल्लविन्यास का एक और प्रकार मिला है। सिर के ऊपर गोल टोपी की तरह मौलिबन्ध और दक्षिण- वाम पार्श्व में उससे निसृत दो माल्यदाम लटकते रहते हैं । राजघाट के एक मृण्मय स्त्री मस्तक में जो इस समय लखनऊ के अजायब घर में है, भी यह रचना मिली है । कुछ मस्तक ऐसे भी मिले हैं जिनमें दक्षिणभाग में जटाजूट तथा वाम में कावली का प्रदर्शन है । २२ ३० मौली-मौली बन्ध केश रचना का एक उपमा में 4 उल्लेख है ( ईशान मौलिमिव, सं० पू० पृ० ९५ ) । सीमन्तसन्तति - यशस्तिलक में सीमन्त का उल्लेख कई बार हुआ है, किन्तु सीमन्तसन्तति का उल्लेख केवल एक बार ही हुआ है । ३३ सीमन्त बालों को बीच से विभक्त करके दोनों और सँवारने को कहते हैं । सोमदेव ने 'सीमन्तेषु द्विधा भावो ३४ कहकर इसकी सूचना भी दी है । सीमन्तसंतति सम्भवतया केशविन्यास के उस प्रकार को कहते थे जिसमें मुख्य २८. वित्र समानैधम्मिल्लतमाल पल्लवैः । - हर्ष० ४ १३३ २९. पाटलीप्रसवसुरभितधम्मिल्लमध्याभिः । - यश० ० पू० ५३२ ३०. राजा सा० औँधकृत अजन्ता फलक ६६ उद्घृत, अग्रवाल कला और संस्कृति, पृ० २५१ ३१. अग्रवाल- राजघाट के खिलौनों का एक अध्ययन, कला और संस्कृति, पृ० २५१ ३२. वही, पृ० २१२ ३३. सीमन्तसंततिना । - यश० सं० पू० पृ० १०५ ३४. वही पृ० २०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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