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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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केशपाश में पुष्प और पत्र युक्त मंजरियों से बनाए गये गुलदस्तेनुमा पुष्पालंकार केशों में खोंस लिए जाते थे, जिससे वे शिखंडित अर्थात् मुकुट की तरह दिखने लगते थे। ___ मानसार के अनुसार इस तरह के केश-विन्यास का अंकन सरस्वतो और सावित्री की मूर्तियों के मस्तक पर किया जाता है । २०
चिकुरभंग-केशों के लिए चिकुर शब्द का भी प्रयोग सोमदेव ने कई बार किया है। सम्भवतया पतले केशों को चिकुर कहते थे। अमरकोषकार ने चञ्चल का पर्याय चिकुर दिया है ।२१ चिकुरों को जब पत्र, पुष्प और मालाओं द्वारा सजा लिया जाता था तब उसे चिकुरभंग कहते थे। सोमदेव ने शतपत्री पुष्पों की मालाओं से बाँधे गये तथा तमाल पुष्पों के गुच्छों से सजाए गये चिकुरभंग का वर्णन किया है। २२
चिकुरों की कृष्णता की ओर भी सोमदेव ने विशेष रूप से ध्यान दिलाया है। प्रमदवन में सप्तच्छद वृक्षों को छाया कामियों के चिकुरों की कान्ति से कलुषितसी हो गयी थी ।२३ एक अन्य प्रसंग में चिकुरों को निसर्ग कृष्ण कहा है । २४ ।।
धम्मिल्लविन्यास--यशस्तिलक में धम्मिल्लविन्यास का उल्लेख दो बार हुआ है। सोमदेव ने मुनिमनोहर नामक मेखला को नागनगरदेवता के धम्मिल्लविन्यास की तरह कहा है । २५
__ धम्मिल्लविन्यास मौलिबद्ध केश रचना को कहते थे ।२६ इस प्रकार से संभाले गये पुरुष के बाल मौलि तथा स्त्री के धम्मिल्ल कहलाते हैं (शिवराममूर्तिअमरावती०, पृ० १०६) । बालों का जूड़ा बनाकर उसे माला से बाँध दिया जाता था। जूड़ा के भीतर भी माला गूंथी जाती थी। कालिदास ने 'मुक्तागुणोन्नद्ध अन्तर्गतस्रजमौलि' का उल्लेख किया है । २७ बाण ने माला के छूट जाने से
२०. उद्धत, जे० एन० बनी-दो डवलपमेंट ऑव हिन्दू भाइकोनोग्राफी, पृ. ३१४ २१. चपलश्चिकुरः समौ ।-अमरकोष, ३, 1.४६ २२. तापिच्छगुलुच्छविच्छुरितशतपत्रोस्रकसन्नद्धचिकुरभंगिना।
-यश०सं० पू० पृ० १०५ २३. चिकुरकान्तिकलुषितसप्तच्छदछायामिः ।-वही, पृ० ३८ २४. कामिनीनां चिकुरेषु निसर्गकृष्णता । -वही, पृ. २०७ २५. धम्मिल्लविन्यास इव नागनगरदेवतायाः।-पृ. १३२ २६. धम्मिल्ला: संयताः कचाः।-अमरकोष, २, ६, ९७ २७. रघुवंश १७२३
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