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परिच्छेद नौ
केश विन्यास, प्रसाधन सामग्री तथा पुष्प प्रसाधन
केश विन्यास
यशस्तिलक में केश विन्यास और केश प्रसाधन सम्बन्धी प्रभूत सामग्री है। प्राचीन भारत में इस कोमल कला का विशेष प्रचार था । साहित्य और पुरातत्व की सामग्री में इसका समान रूप से अंकन हुआ है । यशस्तिलक में सोमदेव ने केशों के और जटा शब्दों का प्रयोग किया I रूप के सुगन्धित धुएँ से सुखा लिया जाता था, उसके बाद पुष्प, पुष्पमाला, मंजरी आदि के द्वारा कलात्मक ढंग से था । सँवारे हुए केशों में सोमदेव ने अलकजाल कुन्तलकलाप, केशपाश, चिकुरभंग, धम्मिल्लविन्यास, मौलिबन्ध, सीमन्तसन्तति, वेणिदण्ड, जूट तथा कबरी का वर्णन किया है । इनकी विशेष जानकारी निम्न प्रकार है
लिए अलक, कुन्तल, केश, चिकुर, कच स्नान के अनन्तर केशों को सर्वप्रथम चूर्ण, सिन्दूर, पल्लव, सँवार कर बाँधा जाता
केश धूपाना- - स्नान के बाद केश सँवारने के पूर्व उन्हें सुगन्धित धूप के धुएँ से सुखाने का सोमदेव ने दो बार उल्लेख किया है । कालिदास ने केशों को धूपाने की प्रक्रिया का विशेष वर्णन किया है। धूपित करने से स्नानार्द्र केश भभरे हो जाते थे और उनमें धूप की सुगन्धि व्याप्त हो जाती थी । कालिदास ने घूपित केशों को 'प्राश्यान' कहा है । २ धूप से सुगन्धित किये जाने के कारण इन्हें धूपवास भी कहते थे । ३
केश सुवासित करने की यह प्रक्रिया केश-संस्कार कहलाती थी । कालिदास की नायिकाएँ अटारी पर गवाक्षों के पास बैठकर केश-संस्कार करती थीं, जिसमे गवाक्षों से निकलनेवाले सुगन्धित धुएँ को देखकर मार्ग से चलने वाले
१. अविरतदह्यमानकालागुरु धूपधूमोद्गमारभ्यमाण दिग्विलासनी कुन्तल जालम् । - पृ० ३६८; अलकधूपधूमेषु । पृ० ८, उत्त
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२. तं धूपा श्यन के शान्तम् । - रघुवंश, १७ २२ । श्राश्यान शोषित, सं० टी० ३. स्नानार्द्रमुक्तेष्वनुधूपवासम् । - वही १६।५०
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४. केश संस्कार धूमैः । - मेघदूत १।३२
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