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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १५१ सोमदेव ने 'क्वणित' कहा है । ८१ बारविला सिनियों के वाचाल तुलाकोटियों के क्वरित से क्रीड़ा- हंस श्राकुलित हो रहे थे । ८२ एक स्थान पर नीलमणि के बने तुलाकोटि का उल्लेख है (नीलोपलतुला कोटिषु, उत्त० पृ० ९) । तुलाकोटि का उल्लेख बाण ने तुलाकोटि न्ध्र में प्रचलित नूपुरों से अर्थात् तराजू की डंडी के अमरावती०, पृ० ११४) । समान 0 भी हर्षचरित ( पृ० १६३ ) में किया है । मेल खाते हैं । इनके दोनों किनारे तुला किंचित् घनाकार होते हैं ( शिवराम ० इसी कारण इसका नाम तुलाकोटि पड़ा । हंसक - हंसक का उल्लेख भी एक बार ही हुआ है । शंखनक कांसे के हंसक (कंसहंसक) पहने था । ८३ हंसक के शब्द को सोमदेव ने रसित कहा है । ८४ हंसक से तात्पर्य उन बाँके नुपुरों से था जिनकी आकृति गोल न होकर बाँकी मुड़ी हुई होती थी । आजकल इन्हें बाँक कहते हैं । ८५ ८१. वाचालतुला को टिक्वणिताकुलित विनोदवारलम् । -- ८२. वही ८३ कंसहंसकर सितवाचालचरण-पृ० ३३३ -- पृ० ३४५ ८४. वही ८५. अग्रवाल - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ६७, फलक है, चित्र ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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