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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
सारसना-चण्डमारी के लिए कहा गया है कि मृतक प्राणियों की बातें ही उसकी सारसना थी।७४
घर्घरमालिका-यशोधर जब बालक था, तो खेल-खेल में दाई की कमर से घर्षरमालिका को निकाल कर पैरों में बाँध लेता था ।७५ पैर के आभूषण
पैर के आभूषण के लिए यशस्तिलक में पांच शब्द आये हैं-(१) मंजीर, (२) हिंजीरक, (३) नूपुर, (४) तुलाकोटि, (५) हंसक । ___ मंजीर-सोमदेव ने मणिमंजीर का उल्लेख किया है।७६ मंजीर को पहनकर चलने से जो मधुर झन-झन शब्द होते थे उन्हें शिजित कहते थे ।७७ मंजीर रस्सी सहित मथानी को कहते हैं, इसी की समानता के कारण इसका नाम मंजीर पड़ा। मंजीर वजन में हलके तथा भीतर से पोले होते थे। उनमें भीतर बहुमूल्य मोती मादि भरे जाते थे। माड़वार में अभी भी इस तरह के आभूषण पहनने का रिवाज है ( शिवराम०, अमरावतो०, पृ० ११४)।
हिंजीरक-हिंजीरक का उल्लेख केवल एक बार हुआ है। विरहणी स्त्रियाँ हाथ का केयूर चरण में तथा चरण का हिंजीरक हाथ में पहन लेती थीं।७८ हिंजीरक का पर्याय श्रुतसागरदेव ने नूपुर दिया है। यशस्तिलक से इस पर विशेष प्रकाश नहीं पड़ता।
नूपुर-नूपुर का भी एक बार ही उल्लेख हुआ है ।७९ श्रुतसागर ने यहाँ नूपुर का पर्याय मंजीर दिया है ।६० नूपुर पहनकर चलने से मधुर शब्द होता था। नूपुर जल्दी पहने या उतारे जा सकते थे। अमरावती की कला में एक दासी थाली में नूपुर लिए प्रतीक्षा करती खड़ो है कि जैसे ही अलक्तक मंडन समाप्त हो, वह नूपुर पहनाए।
तुलाकोटि--तुलाकोटि का दो बार उल्लेख है। तुलाकोटि के शब्द को
७४. सारसना मृतकान्त्रच्छेदाः।-पु. १५०
१. मुक्त्वा घर्घरमालिकां कटितटाध्या च तां पादयोः।-पृ. २३४ ७६. रमणीमणिमंजीरशिंजित......1-१०३१ ७७. झणझणायमानमणिमंजोरशिजित.....-प० १०॥ ७८. केयूरं चरणे धृतं विरचितं हस्ते च हिंजौरकम् ।-पृ० ६१७ ७९ यत्रालितो नूपुरी।--पृ० १२६ ८०. नूपुरी मंजीरी।-सं. टी.
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