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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १४९ में काम करने जाते समय अपनी ढीली-ढाली कांची को बार-बार हाथ से ऊपर चढ़ाती थीं, जिससे उनका ऊरु प्रदेश दिख जाता था।६५ विपरीत रति में कांची जोर-जोर से हिलने लगती थी।६६ विरहणी नायिका कमर की कांची गले में डाल लेती थी।६७ तीनों प्रसंगों पर श्रुतसागर ने कांची का पर्याय कटि = मेखला दिया है। एक स्थान पर कांची के लिए कांचिका भी कहा गया है ( हंसावलीकांचिका, पृ० ५०३) मेखला-मेखला का उल्लेख पाँच बार हुआ है। मुखर मणिमेखलाओं के शब्द से पंचमालिप्ति नामक राग द्विगुणित हो गया था।६८ यहाँ श्रुतसागर ने मेखला का पर्याय रसना दिया है ।६९ इसी प्रसंग में सिन्दुवार की माला लगाकर केले के कोमल पत्तों को बनायी गयी मेखला ( कदलीप्रवालमेखला ) का उल्लेख है । ७° शंखनक ने मथानो की पुरानी रस्सी को मेखला की तरह पहन रखा था (पुराणतरमन्दीरमेखला, पृ० ३९८ )। समुद्र की उपमा मेखला से दी है (महीं च रत्नाकरवारिमेखलाम्, उत्त० पृ० ८७)। रसना-रसना का उल्लेख केवल एक बार हुआ है। वह भी हारयष्टि के वर्णन में प्रसंगवश आ गया है। सोमदेव ने आरसना अर्थात् रसना पर्यन्त लटकतो हुई हारयष्टि का वर्णन किया है।७१ यहाँ श्रुतसागर ने पारसन का अर्थ मागुल्फलम्ब किया है। ___ अमरकोषकार ने उपर्युक्त तीनों को पर्याय माना है ।७२ सोमदेव के उपर्युक्त उल्लेखों से लगता है कि कांची एक लड़ी की ढीली-ढाली करधनी होना चाहिए तथा मेखला छुद्र घंटिकाएँ लगी हुई। उपर्युक्त उल्लेखों में कांची के लिए कांचीगुण पद आया है तथा मेखला के लिए मुखरमणिमेखला कहा गया है। एक स्थान पर मेखला को मरिणकिंकणी युक्त भी बताया गया है।७३ ६५. कांचिकोल्लासवशदर्शितोरुस्थलाः।-पृ० १५ ६६. पुरुषरतनियोगव्यग्रकांचीगुणानाम् 1-पृ० ५३७ ६७ कण्ठे कांचिगुणोऽपितम् ।-पृ०६१७ ६८. मुखरमणिमेखलाजालवाचालितपंचमा लिप्तिः ।-पृ० १०० ६६. मेखलाजालानि रसनासमूहा: ।-२० टी०, पृ० १०० ७० सिन्दुवारसर सुन्दर कदलीप्रवालमेखलेन ।-पृ० १०६ ७१. पारसनहार यष्टिभिः।-पृ० ५५५ ७२, स्त्रोकटयां मेखला कांची सप्तकी रशना तथा ।-अमरकोष, २, ६, १०८ ७३. मेखलामणिकिंकणीजालवदनेषु । -पृ. ६ उत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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