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१४८.
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
सोने के कंकरण पहनती थीं । ५८ यशोधर ने भी सभामण्डप में जाने के पूर्व कंकरप पहने (निधाय करे कंकणालंकारम् ) । एक अन्य प्रसंग में यशोधर को ' कनकककरणवर्ष' कहा है ( पृ० ५६६ ) ।
वलय का उल्लेख तीन बार हुआ है । शंखनक भैंसे के सींग के बने वलय पहने था । ५९ एक स्थान पर यशस्तिलक का नायक यशोधर कहता है कि टूटे हुए दिल को स्फटिक के फूटे हुए बलय की तरह कौन मूर्ख धारण किए रहेगा । ६० यन्त्रधारागृह के प्रसंग में मृणाल के बने वलय का उल्लेख है । ६१ चतुर्थ उच्छ्वास में दाँत के बने वलय का उल्लेख है ( दन्तवलयेन, उत्त० ६९ ) ।
अंगुलियों के आभूषण
उर्मिका - यशस्तिलक में अंगूठी के लिए उर्मिका तथा अंगुलीयक शब्द आये हैं । यशोधर रत्न की बनी उर्मिका पहने था । ६२ उर्मि का अर्थ भँवर है । भँवर के समान कई चक्कर लगा कर बनायी गयी अंगूठी को उर्मिका कहते थे । बुन्देल - खण्ड में श्राजकल इसे छला कहा जाता है |
उर्मिका का उल्लेख बाणभट्ट ने भी किया है । सावित्री दाहिने हाथ में शंख की बनी उर्मिका पहने थी । ६३
अंगुलीयक- अंगुलीयक का केवल एक बार उल्लेख नाया में एक गडरिया अंगुलीयक के बदले में बकरा देने के लिए तैयार है । ६४ कटि के आभूषण
afe के आभूषणों के लिए कांची, मेखला, रसना, सारसना तथा घर्घरमालिका नाम आये हैं ।
कांची - कांची का उल्लेख तीन बार हुआ है । यौधेय की कृषक बधुएँ खेतों
५८. कनकमय कंकणाः ५६. ...... गवलवलयावरुण्डनः । - पृ० ३९८
गोपिकाः । - पृ० १३
गवलवलयानां महिषट गकटकानाम् । सं० टी०
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। चौथे आश्वास
६०. को नु खलु विघटितं चेतः स्फटिकवलयमिवमुधापि संधातुमर्हति । उत्त० पृ० ७७
६१. मृणालवलयालं कृतकलाचीदेशाभिः । - पृ० १३२
६२. सरत्नोर्मिकाभरणः । - पृ० ३६७
६३. कम्बुनिर्मितोर्मिका । - हर्षचरित, पृ० १०
६४. प्रसादीकरोत्यंगुलीयकम् । - उत्त०, पृ० १३१
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