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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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यन्त्र धारागृह के प्रसंग में मोगरक के कुड्मलों की बनी हारयष्टि का उल्लेख है 1५°
मौक्तिकदाम -- यशस्तिलक में मौक्तिकदामका उल्लेख केवल एक बार हुआ है । विरहगी नायिका के गले की मौक्तिकमाला चूर-चूर हो गयी । ५१ यन्त्रधारागृह के प्रसंग में कुसुमदाम का भी उल्लेख है । ५२
भुजा के आभूषण
यशस्तिलक में भुजा के आभूषणों में अंगद और केयूर का उल्लेख है ।
अंगद - अंगद का उल्लेख केवल एक बार हुआ है । शंखनक बेर के बराबर बड़ा पुष मरिण (सीसे का गुरिया) लगाकर बनाया गया अंगद पहने था । ५३ केयूर - केयूर का उल्लेख यशस्तिलक में दो बार हुआ है । राजपुर की स्त्रियां लाल कमल में श्वेत कमल लगाकर केयूर बना लेती थीं । १४ विरह की अवस्था में स्त्रियाँ बाहु का केयूर पैरों में और पैरों के नूपुर बाहु में पहन लेती थीं । ५
अंगद और केयूर में क्या अन्तर था, इसका पता यशस्तिलक से नहीं चलता । अमरकोषकार ने दोनों को पर्याय माना है ।१६ क्षीरस्वामी ने केयूर और अंगद की व्युत्पत्ति करते हुए लिखा है कि ' के बाहूशीर्षे यौति केयूरम् ५७ अर्थात् जो भुजा के ऊपरी छोर को सुशोभित करे उसे केयूर कहते हैं तथा जो 'भ्रंगं दयते अंगदम्' - अर्थात् जो अंग को निपीड़ित करे वह अंगद ।
पुरुष और स्त्री दोनों अंगद पहनते थे ।
कलाई के आभूषण
कंकरण और वलय - कलाई के आभूषणों में कंकरण और वलय के उल्लेख हैं । स्त्री और पुरुष दोनों कंकरण पहनते थे । यौधेय जनपद के कृषकों को स्त्रियाँ
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५०. विच किल मुकुलपरिकल्पित हारयष्टिभिः । - पृ० १३२ ५१. कण्ठे मौक्तिकदामभि: प्रदलितम् । - पृ० ६१३ ५२. शिरीषकुसुमदाम संदामित... | पृ० ५३२ ५३. कुवल / फलस्थलत्रा पुषमणिविनिर्मितांगद - पृ० ३६८ ५४. सौगन्धिकानुबद्धकमलकेयूरपर्यायणा । - पृ० १०६ ५५. केयूरं चरणे धृतं विरचितं हस्ते च हिजीरिकम् - १० ६१७ ५६. केयूर मंगदं तुल्ये । - श्रमरकोष, २, ६, १०७ १७. वही, सं० टी०
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