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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन कोण्ठिका-कण्ठिका का यशस्तिलक में दो बार उल्लेख हुआ है। शंकनक ने अनेक तरह की जड़ें मंत्रित करके लपेटी हुई कण्ठिका पहन रखी थी।४१ दाक्षिणात्य सैनिक अनेक प्रकार के चित्र विचित्र गुरियों की बनी तीन लड़ियों को कण्ठिकाएँ पहने थे।४२ हार-हार का उल्लेख यशस्तिलक में सात बार हुआ है। राजपुर की स्त्रियां उदारहार पहनती थीं।४३ ग्रीष्म ऋतु की भयंकर धूपरूप अग्नि के सम्पर्क से नायिकाओं के मौक्तिक हार फूटे जा रहे थे (तीव्रातपातंकपावकसम्पर्कस्फुटन्मौक्तिकविरहणीहृदयहारे, सं० पू० ५२२) । पाण्ड्य जनपद का राजा सम्राट यशोधर को प्राभृत में देने के लिए मुक्ताफल के मध्यमणि वाला हार लेकर उपस्थित हुआ।४४ यहाँ सम्भवतया हार से प्रयोजन एकावली से है। वैतालिकों ने तारहारस्तनी स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करने की यशोधर महाराज से प्रार्थना की । ४५ तारोत्तरल हारों की कान्ति से चन्द्रमा का प्रकाश सान्द्र (घना) हो गया ।४६ विरहणी नायिका की कंपकपी से हार चंचल हो उठे ।४७ किसी विरहणी नायिका ने बन्धुबान्धवों के कहने से आभूषण पहने भी तो कटि की करधनी गले में और गले का हार नितम्ब में पहन लिया ।४८ यशोधर ने सभामण्डप में जाने के पूर्व मुक्ताफल का हार पहना (गुणवतां वर हर, कण्ठे गृहीत्वा मुक्ताफलभूषणानि)। ___ हारयष्टि-हारयष्टि का उल्लेख दो बार हुआ है । गुल्फों तक लटकती हुई हारयष्टियों से टूट-टूट कर गिरने वाले मोतियों का समूह ऐसा लगता था मानों होनेवाली संग्राम विजय पर देवांगनाओं ने पुष्प बिखेर दिये हों। ४९ ४६. अनेकजटाजातिजटितकण्ठिकावगुण्ठनजठरकण्ठनालः । -यश. पृ. ३६८ ४३. किर्मीरमणिविनिर्मितत्रिशरकण्ठिकम् ।-पृ० ४६२ ४३. उदारहार निर्भरीचित...।-पृ० २४, उदारा अतिमनोहरा ।-सं० टी० ४४. तरलगुलिकहारप्राभूतव्यग्रहस्तः।-पृ० ४६६ ४५. तारहारस्तनीनाम् । -पृ. ५३४ ।। ४६. हारैस्तारोत्तरलरुचिभिः।-पृ० ६१० ४७. उत्तारहारतरलं स्तनमण्डलं च ।-पृ० ६१६ ४८. कराठे कांचिगुणोऽपितः परिहितः हारो नितम्बस्थले। -पृ०६१७ ४६. भापतन्मुक्ताफलप्रकराभिरासनहारयष्टिभिरागामिजन्यजयसमयावसरसुरसुन्दरी करविकीर्ण कुसुमवर्षमिव । पृ० ५५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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