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यति,
महासाहसिक, महासाहसिकों का आत्म- रुधिरपान, मुनि, मुमुक्षु, यागज्ञ, योगी, वैखानस, शंसितव्रत, श्रमण, साधक, साधु, सूरि, जितेन्द्रिय, क्षपण, श्रमण, आशाम्बर, नग्न, ऋषि, मुनि, यति, अनगार, शुचि, निर्मम, मुमुक्षु, शंसितव्रत, वाचंयम, अनूचान्, अनाश्वान्, योगी, पंचाग्नि साधक, ब्रह्मचारी, शिखोच्छेदी, परमहंस, तपस्विी । परिच्छेद ४ : पारिवारिक जीवन और विवाह
१४
८५-९०
संयुक्त परिवार प्रणाली, वयोवृद्धों का आदर सम्मान, छोटों की मर्यादा, चिरपरिचित पारिवारिक सम्बन्ध, पति, पत्नी, पुत्र, बालक्रीड़ाओं का हृदयग्राही वर्णन, स्त्री के विभिन्न रूप - भगिनी, जननी, दूतिका, सहचरी, महानसकी, धातृ, भार्या । कन्यादान और विवाह - स्वयंवर, स्वयंवर आयोजन की विधि, स्वयंवर की परंपरा, माता-पिता द्वारा विवाह का आयोजन, विवाह की आयु, बाल-विवाह, सोमदेव के पूर्व बाल-विवाह की परम्परा, स्मृति ग्रन्थों के उल्लेख, अलबरूनी की सूचना, बाल-विवाह के दुष्परिणाम |
परिच्छेद ५ : पाक-विज्ञान और खान-पान
९१-१०७
यशस्तिलक में प्राप्त खान-पान विषयक सामग्री की त्रिविध उपयोगिता, खाद्य और पेय वस्तुओं की लम्बी सूची, दशमी शती में भारतीय परिवारों की खान-पान व्यवस्था, ऋतुओं के अनुसार संतुलित एवं स्वास्थ्यकर भोजन । पाकविद्या, त्रेसठ प्रकार के व्यंजन, सूपशास्त्र विशेषज्ञ पोरोगव । बिना पकाई गयी सामग्री - गोधूम, यव, दीदिवि, श्यामाक, शालि, कलम, यवनाल, चिपिट, सक्तू, मुद्ग, माष, बिरसाल, द्विदल । घृत, दधि, दुग्ध, मट्ठा आदि के गुण-दोष तथा उपयोग विधि, भोजन के साथ जल पीने के गुण-दोष । जल : अमृत या विष, ऋतुओं के अनुसार जल, संसिद्धजल, जल संसिद्ध करने की प्रक्रिया । मसाले - लवण, दरद, क्षपारस, मरिच, पिप्पली, राजिका । स्निग्ध पदार्थ, गोरस तथा अन्य पेय - घृत, आज्य, पृषदाज्य, तैल, दधि, दुग्ध, नवनीत, तक्र, कलि या अवन्तिसोम, नारिकेलि फलांभ, पानक, शर्कराढ्य पय । मधुर पदार्थशर्करा, सिता, गुड़, मधु, इक्षु । साग-सब्जी तथा फल- — पटोल, कोहल, कारवेल, वृन्ताक, वाल, कदल, जीवन्ती, कन्द, किसलय, विष, वास्तूल तण्डुलीय, चिल्ली, चिर्भटिका, मूलक, आर्द्रक, धात्रीफल, एर्वारु, अलावू, कर्कारु, मालूर, चक्रक, अग्निदमन, रिंगणीफल, अगस्ति, आम्र,
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