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________________ श्रोत्रिय, वाडव, उपाध्याय, मौहूर्तिक, देवभोगी, पुरोहित, त्रिवेदी । ब्राह्मणों की सामाजिक मान्यता, क्षत्रिय, क्षत्रियोंकी सामाजिक मान्यता, वैश्य, वणिक, श्रेष्ठी, सार्थवाह, देशी तथा विदेशी व्यापार करने वाले वणिक, राज्यश्रेष्ठी, शूद्र, अन्त्यज, पामर, शूद्रों को सामाजिक मान्यता, अन्य सामाजिक व्यक्ति - हलायुधजीवि, गोप, व्रजपाल, गोपाल, गोध, तक्षक, मालाकार, कौलिक, ध्वज, निपाजीव, रजक, दिवाकीर्ति, आस्तरक, संवाहक, धीवर, धीवर के उपकरण - लगुड, गल, जाल, तरी, तर्प, तुवरतरंग, तरण्ड, वेडिका, उडुप, चर्मकार, नट या शैलूष, चाण्डाल, शबर, किरात, वनेचर, मातंग | परिच्छेद २ : सोमदेवसूरि और जेनाभिमत वर्ण-व्यवस्था ६७-७२ गृहस्थों के दो धर्म - लौकिक और पारलौकिक, लौकिक धर्म लोकाश्रित, पारलौकिक आगमाश्रित, जैन दृष्टि से मान्य विधि, वर्ण-व्यवस्था और तिवाक्यामृत, प्राचीन जैन साहित्य और वर्ण-व्यवस्था, सैद्धान्तिक ग्रन्थों में वर्ण और जाति का अर्थ, जटासिंहनन्दि ( ७ वीं शती) और वर्णव्यवस्था, रविषेणाचार्य ( ६७६ ई० ) और वर्ण-व्यवस्था, जिनसेन ( ७८३ ई० ) और वर्ण-व्यवस्था, श्रौतस्मार्त मान्यताओं का जैनीकरण, सोमदेव के चिन्तन का निष्कर्ष, सोमदेव के चिन्तन का जैन दृष्टि से सामंजस्य । परिच्छेद ३ : आश्रम व्यवस्था और संन्यस्त व्यक्ति ७३-८४ आश्रम व्यवस्था की प्रचलित वैदिक मान्यताएँ, यशस्तिलक में आश्रम - व्यवस्था के उल्लेख, बाल्यावस्था और विद्याध्ययन, गुरु और गुरुकुलोपासना, विद्याध्ययन समाप्ति पर गोदान ओर गृहास्थाश्रम प्रवेश, वृद्धावस्था और संन्यास, अल्पावस्था में संन्यस्त होने का निषेध, आश्रमव्यवस्था के अपवाद, जैनागम और बाल-दीक्षा, आश्रम व्यवस्था की जैन मान्यताएँ । परिव्रजित व्यक्तियों के अनेक उल्लेख - आजीवक, आजीवक सम्प्रदाय के प्रणेता मंखलिपुत्त गोशाल, गोशाल की मान्यताएँ, कर्मन्दी, पाणिनी में कर्मन्दी भिक्षुओं के उल्लेख, कर्मन्दी की ऐकान्तिक मोक्ष साधना, कापालिक, प्रबोधचन्द्रोदय में कापालिकों का उल्लेख, कुलाचार्य या कौल, कौल सम्प्रदाय को मान्यताएँ, कुमारश्रमण, चित्रशिखण्डि, जटिल, देशयति, देशक, नास्तिक, परिव्राजक, परिव्राट, पारासर, ब्रह्मचारी, भविल, महाव्रती, महाव्रतियों की भयंकर साधनाएँ Jain Education International १३ For Private & Personal Use Only ... www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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