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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन कुण्डल - यशस्तिलक में कुण्डल का उल्लेख तीन बार हुआ है । शंखनक कपास के कुड्मल की आकृति के बने कुण्डल पहने था । ३ १ स्वयं सम्राट यशोधर ने चन्द्रकान्त के बने कुण्डल धारण किये थे । ३२ मुनिकुमार युगल बिना आभूषणों के ही अपने कपोलों की कान्ति से ऐसे लगते थे मानों कानों में कुण्डल धारण किये हों । ३३ १४४ शंखनक के 'तूलिनीकुसुमकुड्मल' के उल्लेख से ज्ञात होता है कि कुण्डल कई आकृतियों के बनते थे । अमरकोषकार के अनुसार कुण्डल कान को लपेट कर पहना जाता था । ३४ बुन्देलखण्ड में कहीं-कहीं अभी भी ऐसे कुण्डलों का रिवाज है । इनमें गोल बाली तथा सोने की इकहरी लड़ी लगी होती है । लड़ी को कानों के चारों ओर लपेट लिया जाता है तथा बाली को कान के निचले हिस्से में छिद्र करके पहना जाता है । अजन्ता की कला में इस तरह के कुण्डल का चित्रांकन देखा जाता है । ३५ गले के आभूषण गले के आभूषणों में एकावली, कण्ठिका, मौक्तिकदाम, हार तथा हारयष्टि के उल्लेख हैं । एकावली - सम्राट यशोधर के पिता जब संन्यस्त होने लगे तो उन्होंने अपने गले से एकावली निकालकर यशोधर के गले में बाँध दी । २६ यह एकावली उज्ज्वल मोती को मध्यमरिण के रूप में लगा कर बनायी गयी थी ( तारतरलमुक्ताफलाम् २८८ ) । ७ सोमदेव ने इसे समस्त पृथ्वीमण्डल को वश में करने के लिये प्रादेशमाला के समान कहा है (अखिलमही वलयवश्यता देशमालामिव, २८८ ) । ३१. तूलिनी कुसुम कुड्मला कृतिजातुषोत्कर्षित कर्णं कुण्डलः । - यश० सं० पू०, पृ० ३६८ ३२. चन्द्रकान्तकुण्डलाभ्यामलंकृत श्रवणः । पृ० ३६७ ३३. कपोल कान्तिकुण्डलितमुखमण्डलम् । पृ० १५६ ३४. कुण्डलं कर्णवेष्टनम् । -- श्रमरकोष, २.६,१०३ ३५. श्रधकृत अजन्ता फलक ३३, उद्धृत, अग्रवाल--- हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, फलक २०, चित्र ७८ ३६. आदाय स्वकीयात् कण्ठदेश त्... एकावली बबन्ध 1--यश० सं० पू० पृ० २८८ ३७, तरलाहारमध्यगः । --अमरकोष, २, ६, १५५ " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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