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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १४३ के फूल 'से बने कर्णपूर का उल्लेख है । २३ यशोधर को दशार्ण देश की स्त्रियों के लिए कर्णपूर कहा है ( सं० पू० पृ० ५६८ ) । संस्कृत टीकाकार ने कर्णपूर का पर्याय कर्णावतंस दिया है । २४ कर्णपूर के लिए देशी भाषा में कनफूल शब्द चलता है (कर्णपूर > कर्णफूल > कनफूल ) । कर्णपूर या कनफूल विकसित पुष्प या कुड्मल के आकार के बनते हैं । कणिका – यशस्तिलक में कणिका का केवल एक बार उल्लेख है । द्रामिल सैनिक अपने लम्बे-लम्बे कानों में सोने की कणिका पहने थे । २५ सोमदेव ने लिखा है कि सुवर्ण कणिकाओं से निकलने वाली किरणें कपोलों पर पड़ती थीं, जिससे लगता था कि कपोलों पर फूले हुए कनेर के उपवन की रचना की गयी है । २६ इस उपमा से लगता है कि कर्रिएका कनेर के फूल के आकार की बनती होगी । अमरकोषकार ने कर्रिएका और तालपत्र को पर्याय माना है । २७ क्षीरस्वामी ने इमे स्पष्ट करते हुए लिखा है कि करिंणका तालपत्र की तरह सोने की भी बनती थी । २८ इससे स्पष्ट है कि करिणका तालपत्र की तरह गोल आभूषण था, आजकल इसे तरोना कहते हैं । कर्णोत्पल - ऊपर उत्पल के अवतंसों का वर्णन किया गया है, कर्णोत्पल का भी एक बार उल्लेख है । सोमदेव ने यौधेय की कृषक वधुनों के नेत्रों की उपमा विकसित हुए कर्णोत्पल से दी है । १९ कर्णोत्पल सम्भवतः उत्पल अर्थात् नीले कमल का बनता था अथवा उसी आकार का सोने आदि का भी बनता हो । अजन्ता के चित्रों में भी करर्णोत्पल का चित्रांकन हुआ है | ३० 1 –१० ५३२ २३. कर्ण पर मरुबकोद्भेदसुन्दर गण्डमण्डलाभिः । - २४. कर्णपरं कर्णाभरणं श्रवणावतंसः । - सं० टी० १० २४ २५. अतिप्रलम्ब श्रवणदेशदोलायमान स्फार सुवर्णकर्णिका । — पृ० ४६३ २६- सुवर्णकरिंणका किरणको टिकमनीय मुखमण्डलतया कपोलस्थली परिकल्पितप्रफुल्ल कर्णिकारकाननमिव । 1- पृ० ૪૬૨ २७. कर्णिका तालपत्रं स्यात् । - श्रमरकोष, २, ६, १०३ २८. कर्णालंकारस्तालपत्रवत्सौवर्णोऽपि। वहीं, सं० टी० २६. विकचकर्णोत्पलस्पर्धितरलेक्षणाः । - यश० पृ० १५ २०. औंधकृत अजन्ता, फलक ३३ । उद्धृत, अग्रवाल - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन फलक २०, चित्र ७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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