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________________ १४२ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन हुए अवतंसोत्पल विरह की अवस्था में मुकूलित हो जाते थे। २ मुनिकुमार युगल कोई अलंकार नहीं पहने थे, फिर भी कानों पर पड़ रही अपने नीले नेत्रों की कान्ति से लगते थे मानों कुवलय के अवतंस पहने हों। १३ एक स्थान पर उत्प्रेक्षालंकार में कुवलयावतंस का उल्लेख है ।१४ यन्त्रधारागृह में यन्त्रस्त्री को भी कुवलय के अवतंस पहनाए गये थे ।१५ उत्पल और कुवलय दोनों नीले कमल के नाम हैं, १६ इसलिए उपर्युक्त काव्यालंकारों के साथ उनका सामंजस्य बैठाया गया है। कैरव ७ अर्थात् सफेद कमल के अवतंस का भी एक प्रसंग में उल्लेख है। यहाँ सोमदेव ने अवतंस के लिए केवल वतंस शब्द का प्रयोग किया है। भागुरि के अनुसार 'अव' और 'अपि' उपसर्गों के प्रकार का लोप हो जाता है। एक स्थान पर रत्नावतंस का उल्लेख है (धर्मरत्नावतंसः, सं० पू० ५६६ )। अवतंस पहनने का रिवाज सम्भवतः कर्णाटक तथा बंगाल में अधिक था, क्योंकि सोमदेव ने एक प्रसंग पर मारिदत्त राजा को कर्नाटक देश की कामिनियों के लिए अवतंस के समान १९ तथा एक अन्य प्रसंग में बंगाल की वनिताओं के कर्णावतंसों की तरह बताया है ।२० एक स्थान पर पद्मावतंस का उल्लेख है ( पद्मावतंसरमणीरमणीयसारः, ५९७, पू० ) । कर्णपूर-कर्णपूर का उल्लेख चार बार हुआ है। एक स्थान पर स्त्रियों के मधुरालाप को कर्णपूर के समान बताया है ।२१ दूसरे प्रसंग में सूक्त गीतामृत को कर्णपूर की तरह स्वीकृत करते हुए लिखा है ।२२ यन्त्रधारागृह के प्रसंग में मरुए १२. मुकुलितं कर्णावतंसोत्पलैः।-पृ० ६१३ १३. अनवतंसमपि कुवलयितकर्णम् ।-पृ० १५६ १४. कुवलयैः कर्णावतंसोदयैः। --५० ६१२ १५. कुवलयेनावतंसापितेन ।--प०५३१ १६. स्यादुत्पलं कुवलयमथ नीलाम्बु जन्म च । अमरकोष, १.६३७ १७. सिते कुमुदकैरवे ।-वही, १.६.३८ १८. कैरवावतंसः। -पृ०६१० १६. कर्णाटयुवतिसुरतावतंस । -पृ० १८० २०. बंगीवनिता श्रवणावतंस ।-५० १८८ २१. स्मरसारालापकर्णपूरैः।-पृ० २४ २२. सूक्तगीतामृतरसं कर्णपूरतां नयन् |-प० ३६६ Jain Education International For Private & Personal'Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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