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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १४१ पट्ट सिर पर बाँधने पट्ट- - पटबन्ध उत्सव के प्रसंग में पट्ट का उल्लेख है । ५ का एक विशेष प्रकार का आभूषण था । यह प्राय: सोने का होता था जो उष्णीष या शिरोभूषा के ऊपर बाँधा जाता था । केवल राजा, युवराज, राजमहिषी और सेनापति को पट्ट बाँधने का अधिकार था । बृहत्संहिता (४८०२-४) में पाँच प्रकार के पट्टों की लम्बाई, चौड़ाई और शिखा का विवरण दिया गया है । पाँच प्रकार का पट्ट प्रसाद - पट्ट कहलाता था, जो सम्राट की कृपा से किसी को भी प्राप्त हो सकता था । ६ मुकुट - एक प्रसंग में महासामन्तों के मुकुटों का उल्लेख है । ७ कर्णाभूषण कर्ण के आभूषणों में अवतंस, कर्णपूर, करिंणका, कर्णोत्पल तथा कुण्डल का उल्लेख है | अवतंस - अवतंस प्राय: पल्लवों अथवा पुष्पों का बनता था । यशस्तिलक में विभिन्न प्रसंगों पर पल्लव, चम्पक, कचनार, उत्पल, कुवलय तथा कैरव के बने श्रवतंसों के उल्लेख आये हैं । एक स्थान पर रत्नावतंस का भी उल्लेख है । पल्लवावतंस — प्रमदवन की क्रीड़ाओं के प्रसंग में सोमदेव ने लिखा है कि कपोलों पर प्राये हुए स्वेदबिन्दु रूप मंजरी - जाल से कामिनियों के अवतंस - पल्लव पुष्पित से हो गये थे । " यन्त्रधारागृह के प्रसंग में भी अवतंस किसलय का उल्लेख है । ९ पुष्पावतंस - राजपुर की कामिनियाँ कचनार के विकसित हुए पुष्पों में चम्पा के पुष्प लगाकर अवतंस बनाती थीं । १० उत्पल के अवतंसों को छूती हुई कुन्तल वल्लरी ऐसी प्रतीत होती थी जैसे उत्पल पर भौंरे बैठे हों । ११ कानों में पहने ५. पट्टबन्ध विवाहोत्सवाय । पृ० २८८ पट्टबन्धोत्सवोपकरणसंभारः । - पृ० २८६ ६. अग्रवाल - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५५ ७. महासामन्तमुकुटमाणिक्य । - यश० सं० पू० पृ० ३३६ ८. कपोल लोल्लसत्स्वेद जलनं जरीजालकुसुमितावतंसपल्लवाभिः । पृ० ३८ ६. वल्लभावतंस किसलयाश्वासम् । - पृ० ३३१ १०. चम्पकचितविकचकचनारविरचितावतंसेन । पृ० ११६ ११. कर्णावतंसोत्पल श्लिष्टेन्दिन्दिर सुन्दरद्युतिः कुन्तलवल्लरी । - पृ० १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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