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परिच्छेद आठ
आभूषण
यशस्तिलक में सोमदेव ने शरीर के विभिन्न अंगों में धारण किये जाने वाले विभिन्न अलंकारों या आभूषणों का उल्लेख किया है । शिरोभूषण में किरीट, मौलि, पट्ट, मुकुट और कोटीर, करर्णाभरणों में अवतंस, कर्णपूर, करिणका, कर्णात्पल तथा कुण्डल, गले के आभूषणों में एकावली, कण्ठिका, मौक्तिक -दाम तथा हारयष्टि, भुजा के आभूषणों में कंकरण और वलय, अंगुली के आभूषण में उर्मिका तथा अंगुलीयक, कमर के आभूषणों में काँची, मेखला, रसना तथा सारसना और पैर के आभूषणों में मंजीर, हिजीरक, नूपुर, हंसक तथा तुलाकोटि के उल्लेख हैं । भारतीय अलंकारशास्त्र की दृष्टि से यह सामग्री विशेष महत्व की है । विशेष विवरण निम्नप्रकार है
शिरोभूषण
शिरोभूषण में किरीट, मौलि, पट्ट, और मुकुट का उल्लेख है । किरीट - किरीट का दो बार उल्लेख हुआ है । मंगलपद्य में कहा गया है कि जिनेन्द्रदेव के चरणकमलों का प्रतिबिम्ब नमस्कार करते हुए इन्द्र के किरीट में पड़ रहा था । दूसरे प्रसंग में मुनिमनोहर नामक मेखला को श्रटवी रूप लक्ष्मी के किरीट की शोभा के समान कहा गया है । २
मौलि - मौलि का उल्लेख भी दो बार हुआ है ।
राजपुर के उद्यान को महादेव के मौलि के समान कहा गया है । एक प्रसंग में राजाओं के मौलियों का उल्लेख है । पांचाल नरेश के दूत से यशोधर का एक योद्धा कहता है कि यदि कोई राजा हठ के कारण अपना मौलि यशोधर के चरणों में नहीं झुकाता तो युद्ध में उसका सिर काट लूँगा । ४
१. त्रिविष्टपाधीश किरीटोदयकोटिषु । - सं० पू० पृ० २ २. किटोच्छ्रयः इवाटवीलक्ष्म्या: । पृ० १३२ ३. ईशानमौलिमिव । – पृ० १५
४. हठविलुठितमौलि: । पृ० ५५६
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