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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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निचोल का अर्थ प्रच्छदपट अर्थात् बिछाने का चादर किया है । १४० क्षीरस्वामी ने इसे और भी अधिक स्पष्ट किया है कि जिससे शय्या आदि प्रच्छादित की जाए उसे निचोल कहते हैं । १४१ शब्दरत्नाकर में भी निचोलक, निचुलक, निचोल, निचोलि और निचुल ये पाँच शब्द प्रच्छादक वस्त्र के लिए आये हैं ।' ४१ यही अर्थ यशस्तिलक में भी उपयुक्त बैठता है । सोमदेव ने लिखा है कि काले-काले मेघ पृथ्वीमण्डल पर इस तरह छा गये, जैसे नीला प्रच्छदपट बिछा दिया हो । १४३
वितान - यशस्तिलक में सिचयोल्लोच तथा वितान शब्द श्राए हैं। सोमदेव ने लिखा है कि राजपुर में गगनचुम्बी शिखरों पर लगे हुए सुवर्ण कलशों से निकलने वाली कान्ति से श्राकाश-लक्ष्मी के भवन में सिचयोल्लोच - सा बन रहा था । १४४
• एक दूसरे प्रसंग में सोमदेव ने लिखा है कि अस्ताचल पर रहनेवाले साधुनों ने अपने अवान सूखने के लिए वितान की तरह डाल रखे थे । १४५ चण्डमारी के मन्दिर में पुराने चमड़े के बने वितान का उल्लेख है । १४६
अमरकोष में उल्लोच और वितान समानार्थी शब्द हैं । १४७
१४०. निचोलः प्रच्छद्र पटः । - श्रमरकोष, २, ६, ११६
१४१. निचोलते अनेन निचोल:, येन तूलशय्यादि प्रच्छाद्यते । -- वही, सं० टी० १४२ निचोलको निचुलको निचोलं च निचोल्यपि ।
निचुलो वसत्थिकायां स्मृता पर्यस्तिकायुतः ॥ - शब्दरत्नाकर, ३, २२५ १४३. पयोधरोन्नतिजनितजगवलय नोल निचलेषु । - यश० सं० पू० पृ० ७१ ४४. प्रत्नरत्नचयनिचितकांचनकलश विसरद विरल किरणजालजनितान्तरिचलक्ष्मीनिवासविचित्रसिचयोल्लोच्चैः । - यश० सं० पू०, पृ० १८-१९
१४५. अपर गिरिशिख राश्रयाश्रमावा सतापसावान वितानितधातु जलपाटल प्रतानस्पृशि । - यश० उत्त०, पृ० १
४८.
१४६. जीर्ण चर्म विनिर्मितवितानम् । - यश० सं० पू० पृ० १४७, अस्त्र वितानमुल्लोचो - अमरकोष, २, ६, १२०
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