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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन गरीब परिवारों में पुरानी कन्थाएँ चिथड़ी हुई जा रही थीं। १३१ एक अन्य स्थल पर दुःस्वप्न के कारण राज्य छोड़ने के लिए तत्पर सम्राट यशोधर को राजमाता समझाती है कि जू के भय से क्या कन्था भी छोड़ दी जाती है।३२ ____कन्था, जिसे देशी भाषा में कथरी कहा जाता है, अनेक पुराने जीर्ण-शीर्ण कपड़ों को एक साथ सिल कर बनाए गये गद्दे को कहते हैं। गरीब परिवार, जो ठंड से बचाव के लिये गर्म या रूई भरे हुए कपड़े नहीं खरीद सकते, वे कन्थाएँ बना लेते हैं। प्रोढ़ने और बिछाने दोनों कामों में कन्थानों का उपयोग किया जाता है । मोटी होने से इन्हें जल्दी से धोना भी मुश्किल होता है, इसी कारण इनमें जू भी पड़ जाती है। नमत यशस्तिलक में नमत'३३ (हि० नमदा ) का उल्लेख एक ग्राम के वर्णन के प्रसंग में आया है। उजयिनी के समीप में एक ग्राम के लोग नमदे और चमड़े की जीनें बना कर अपनी आजीविका चलाते थे ।१३४ संस्कृत टीकाकार ने नमत का अर्थ ऊनी खेस या चादर किया है ।१३५ __नमदे भेड़ों या पहाड़ी बकरों के रोएँ को कूट कर जमाए हुए वस्त्र को कहते हैं। काश्मीर के नमदे अभी भी प्रसिद्ध हैं। . निचोल-यशस्तिलक में निचोल के लिए निचल शब्द आया है।१३६ संस्कृत टीकाकार ने एक स्थान पर निचोल का अर्थ कंचुक किया है१३७ तथा दूसरे स्थान पर प्रावरण वस्त्र किया है । १३८ पं० सुन्दरलाल शास्त्री ने भी इसी के आधार पर हिन्दी अनुवाद में भी उक्त दोनों ही अर्थ कर दिये हैं । १३९ प्रसंग की दृष्टि से निचल का अर्थ कंचुक यहाँ ठीक नहीं बैठता। अमरकोषकार ने १३१. शिथिलयति दुर्विधकुटुम्बेषु जरत्कन्थापटच्चराणि ।-यश. सं० पू०, पृ०५७ १३२. भयेन किं मन्दविसर्पिणीनां कन्यां त्यजन्कोऽपि निरीनितोऽस्ति । -यश ° उत्त०, पृ० ८९ १३३. मुद्रित प्रति का तमत पाठ गलत है। १३४. नमताजिनजेणाजीवनोटजाकुले |-यश. उत्त०, पृ० २१८ १३५. नमतम् ऊर्णामयास्तरणम् ।-वही, सं० टी० १३६. जगदवलयनीलनिचलेषु, निचलसनाथनृपतिचापसंपादिषु । -यश. सं०, पृ०७१-७२ १३७. नीलनिचल: कृष्णवर्ण निचोलकः कंचुकः । -वही, सं. टी. १३८. निचलसनाथानि प्रावरणवस्त्रसहितानि ।-वही, सं. टी. १३९. सुन्दरलाल शास्त्री-हिन्दी यशस्तिलक, पृ० ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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