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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
परिधान और उपसंव्यान में क्या अन्तर था, यह स्पष्ट नहीं होता । १२३ अमरकोषकार ने दोनों को अधोवस्त्र कहा है। हेमचन्द्र ने भी दोनों को अधोवस्त्र कहा है । १२४ यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार के एक स्थान पर अधोवस्त्र और एक स्थान पर उत्तरीय अर्थ करने से प्रतीत होता है कि टीकाकार को उपसंव्यान के अर्थ का ठीक पता नहीं था। अमरकोषकार ने अधोवस्त्र के लिए उपसंव्यान और उत्तरीय के लिए संव्यान १२५ पद दिया है। सम्भवतः इसी शब्द व्यवहार से भ्रमित होकर टीकाकार ने यह अर्थ कर दिया।
गृह्या-गुह्या का उल्लेख शंखनक नामक दूत के वर्णन में हुआ है। शंखनक ने पुराने गोन की गुह्या पहन रखी थी।१२६ गुह्या का अर्थ श्रुतसागर ने कच्छोटिका किया है ।१२७
बुन्देलखण्ड में बिना सिले वस्त्र को लंगोट की तरह पहनने को कछुटिया लगाना कहते हैं । यहाँ गुह्या से सोमदेव का यही तात्पर्य प्रतीत होता है।
हंसतालिका-हंसतूलिका का उल्लेख सोमदेव ने अमृतमति महारानी के भवन के प्रसंग में किया है। अमृतमति के पलंग पर हंसतूलिका बिछी थी, जिस पर तरंगित दुकूल का चादर बिछा था ।१२८ संस्कृत टीकाकार ने हंसतूलिका का अर्थ प्रास्तरण विशेष किया है । २९
उपधान-तकिए के लिए सोमदेव ने अत्यन्त प्रचलित संस्कृत शब्द उपधान का प्रयोग किया है। अमृतमती के अन्तःपुर में पलंग के दोनों ओर दो तकिए रखे थे, जिससे दोनों किनारे ऊँचे हो गये थे ।१३०
कन्था-यशस्तिलक में कन्था का उल्लेख दो बार आया है। शीतकाल के वर्णन में सोमदेव ने लिखा है कि इतने जोरों की ठंड पड़ रही थी कि
१२३. देखिये-उद्धरण १२० १२४. परिधानं त्वधोंशुकम्, अन्तरीयं निवसनमुपव्यानमित्यपि, ।-अभिधान
चिन्तामणि, १३३६-३३७ १२५. संव्यानमुत्तरीयं च ।-अमरकोष, २०६।११८ १२६. पटच्चरणपर्याणगोणीगुह्यापिहितमेहनः ।-यश० सं० पू०. पृ० ३९८ १२७. गुह्या कच्छोटिका। वही. . टी. १२८. तरंगितदुकलपटप्रसाधितहंसतूलिकम् ।--यश° उत्त०. पृ० ३० १२६: हंसतूलिका प्रास्तरणविशेषः।-वही, सं० टी० १३०. उपधानद्वयोत्तम्भितपूर्वापरभागम् ।-यश. उत्त०, पृ० ३०
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