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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १३५ किया है । ०८ यह एक प्रकार का जांघिया या घंधरीनुमा वस्त्र था, जिसे स्त्री और पुरुष दोनों पहनते थे ।१०९ उष्णीष-शिरोवस्त्र में सोमदेव ने उष्णीष और पट्टिका का उल्लेख किया है। उत्तरापथ के सैनिक रंग-विरंगा उष्णीष पहने थे।५० दक्षिणापथ के सैनिकों ने बालों को पट्टिका से कसकर बान्ध रखा था।११।। सोमदेव के उल्लेख से उष्णीष के आकार-प्रकार या बाँधने के ढंग पर विशेष प्रकाश नहीं पड़ता, केवल इतना ज्ञात होता है कि उष्णीष कई रंग के बनते थे। सम्भव है इनकी रंगाई बाँधनू के ढंग से की जाती हो । बुन्देलखण्ड के लोकगीतों में पंचरंग पाग (उष्णीष) के उल्लेख आते हैं। ___ डॉ. मोतीचन्द्र ने साहित्य तथा भरहुत, साँची और अमरावती की कला में अंकित अनेक प्रकार के उष्णीषों का वर्णन भारतीय वेशभूषा में किया है । ___ कौपीन-कौपीन का उल्लेख सोमदेव ने एक उपमालंकार में किया है। दाक्षिणात्य सैनिक जांघों से इकदम सटा हुआ वस्त्र पहने थे, जिससे वे कौपीनधारी वैखानस की तरह लगते थे । १२ कौपीन एक प्रकार का छोटा चादर कहलाता था, जिसका उपयोग साधु पहनने के काम में करते थे। - उत्तरीय-उत्तरीय का उल्लेख भी तीन बार हुआ है। मुनिकुमारयुगल शरीर की शुभ्र प्रभा के कारण ऐसे प्रतीत होते थे, जैसे उन्होंने दुकूल का उत्तरीय ओढ़ रखा हो । १.१२ कुमार यशोवर के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकालने के लिए जो ज्योतिषो लोग इकट्ठ हुए थे वे दुकूल के उत्तरीय से अपने मुँह ढंके थे।' १४ राजमाता चन्द्रमति ने संध्याराग की तरह हलके लाल रंग का उत्तरीय ओढ़ रखा था (सन्ध्यारागोत्तरीयवसनाम्, उत्त० ८२)। ओढ़नेवाले चादर को उत्तरीय कहा जाता था। अमरकोषकार ने उत्तरीय को अोढ़ने वाले वस्त्रों में गिनाया है।११५ १०८. अधोरुकं वरस्त्रीणां स्याच्चण्डातकमस्त्रियाम् |-अमरकोष, २, ६, १११ 108. मोतीचन्द्र -भारतीय वेशभूषा, पृ० २३ १०. भागभागार्पितानेकवर्ण वसनवेष्टितोष्णीषम् ।-यश. सं. पू. पृ. ४६५ ११५. पट्टिकाप्रतानघटितोद्भटजूटम् । पृ० ४६१ १२. भावंक्षणोरिक्षप्तनिविड निवसनं सकौपीनं वैखानसवृन्दमिव । -पृ. ४६२ ११३, वपुप्रभापटलदुकूलोत्तरीयम् ।-पृ० १५६ ११४. उत्तरीयदुकूलांचलपिहितबिम्बिना । - पृ० ३१६ १५५. संव्यानमुत्तरीयं च ।-अमरकोष, २, ६, ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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