________________
१३२
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
है।८६ किन्तु वास्तव में वारबाण कंचुक की तरह का होकर भी कंचुक से भिन्न था। यह कंचुक की अपेक्षा कुछ कम लम्बा, घुटनों तक पहुँचने वाला कोट था । __काबुल से लगभग २० मील उत्तर खेरखाना से चौथी शती की एक संगमरमर की मूर्ति मिली है। वह घुटने तक लम्बा कोट पहने हैं, जो वारबाण का रूप है।८७ ठीक वैसा ही कोट पहने अहिच्छत्रा के खिलौनों में एक पुरुष मूर्ति मिली है।८८
मथुरा कला में प्राप्त सूर्य और उनके पार्श्ववर दण्ड और पिंगल की वेशभूषा में जो ऊपरी कोट है वह वारबाग ही ज्ञात होता है । मथुरा संग्रहालय, मूर्ति सं० १२५६ की सूर्य की मूर्ति का कोट उपर्युक्त खेरखाना की सूर्य-मूर्ति के कोट जैसा ही है। मूर्ति सं० ५१३ की पिंगल की मूर्ति भी घुटने तक नीचा कोट पहने है। मथुरा में और भी आधे दर्जन मूर्तियों में यह वेशभूषा मिलती है ।।९।।
वारबाण भारतीय वेशभूषा में सासानी ईरान को वेशभूषा से लिया गया। वारबाण पहलवी शब्द का संस्कृत रूप है। इसका फारसी स्वरूप 'बरवान' (Barwan) अरमाइक भाषा में 'बरपानक' (Varpanak) सीरिया की भाषा में इन्हों से मिलता-जुलता 'गुरमानका' (Gurmanaka) और अरबी में 'जुरमानकह' (Zurmanagah) रूप मिलते हैं, जो सब किसी पहलवी मूल शब्द से निकले होने चाहिए । ९०
भारतीय साहित्य में वारबाण के उल्लेख कम ही मिलते हैं। कौटिल्य ने ऊनी कपड़ों में वारबाण की गणना की है ।९१ कालिदास ने रघु के योद्धाओं को वारबाण पहने हुए बताया है । ९२ मल्लिनाथ ने वारबाण का अर्थ कंचुक किया है ।९३ बाणभट्ट ने सेना में सम्मिलित हुए कुछ राजाओं को स्तवरक के बने वारबाण पहने बताया है।९४ दधीचि का अंगरक्षक सफेद वारबाण पहने
८६. कचुको वारब णो स्त्री 1-अमरकोष, २, ८, ६४ ८७. अग्रवाल -हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५० ८८. अग्रवाल -अहिच्छत्रा के खिलौने, चित्र ३०५, पृ० १७३, ऐ-शेण्ट इंडिया ८९. अग्रवाल--हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५०, फुटनोट ८६ १०. ट्रांजेक्शन ऑफ दी फिलोलॉजिकल सोसायटी ऑफ लन्दन, १६४५, पृ० १५४.
फुटनोट, हेनिंग । उद्घ त, अग्रवाल --हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५१ ६१.......वारबाणः परिस्तोमः समन्तभद्रकं च भाविकम् ।-अर्थशास्त्र, २६, १" १२. तद्योधवारबाणानाम् ।--रघुवंश, ४५५ ।। ६३. वारबाणानां कंचुकानाम् ।-वही, सं० टी० १४. तारमुक्तास्तवकितस्तवरकवारबाणैश्च । ---हर्षचरित, पृ० २०६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org