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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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कोशे के वस्त्र बनवा कर रखते हैं। बुन्देलखण्ड में अभी भी कोशे के साफे बाँधने का रिवाज है। ____ कौशेय के विषय में कौटिल्य ने कुछ अधिक जानकारी दी है । अर्थशास्त्र में लिखा है कि पत्रोर्ण की तरह कौशेय की भी चार योनियाँ होती हैं अर्थात् कौशेय के कीड़े नागवृक्ष, लिकुच, बकुल तथा वट के वृक्षों पर पाले जाते हैं और तदनुसार कौशेय भी चार प्रकार का होता है। नागवृक्ष पर पैदा किया गया पीतवर्ण, लिकुच पर पैदा किया गया गेहुाँ रंग का, बकुल पर पैदा किया गया सफेद तथा वट पर पैदा किया गया नवनीत के रंग का होता है । कौशेय चीन से भी आता था।७८ २. पोशाकें या पहनने के वस्त्र
पोशाक या पहनने के वस्त्रों में कंचुक,७९ वारबाग तथा चोलक ८१ का उल्लेख विशेष महत्त्वपूर्ण है।
कंचुक-कंचुक एक प्रकार का कोट होता था, किन्तु सोमदेव ने चोलो अर्थ में कंचुक का प्रयोग किया है। खेतों में जाती हुई कृषक वधुएँ कंचुक पहने थीं, जो कि उनके घटस्तनों के कारण फटे जा रहे थे।८२ यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार ने कंचुक का अर्थ कूर्पासक किया है ।८३
वारबाण-वारबाण का उल्लेख यशस्तिलक में अमृतमती के वर्णन के प्रसंग में आया है। अमृतमती जब अष्टवक्र के साथ रति करके लौटी और जा कर यशोधर के साथ लेट गयी, उस समय जोर-जोर से चल रहे उसके श्वासोच्छ्वास से उसका वारबारण कंपित हो रहा था।८४ श्रुतदेव ने वारबाण का अर्थ कंचुक किया है । ८५ अमरकोषकार ने भी कंचुक और वारबाण को एक माना
७८. नागवृक्षो लिकुचो वकुलो वटश्च योनयः । पीतिका नागवृक्षिका, गोधूमवर्ण
लौकुची, श्वेता वाकुली, शेषा नवनीतवर्णा ।......तथा कौशेयं चीनपटाश्च
चीनभूमिजा व्याख्याताः। -अर्थशास्त्र, २, ११ ७६. पोनकुचकुम्भदपत्रुटत्कंचुकाः।-यश० सं० पू०, पृ० १६ ८०. निरुन्धाना चोत्कम्पोत्तालितवारबाणम् ।-वही, उत्त० पृ० ११ ८.. भाप्रपदीनचोलकस्खलितगतिवैलक्ष्य...... -वही, सं० पू० १० ४६६ ८२. देखिए- उद्धरण संख्या ७६ ८३. कंचुकानि कूर्पासकाः।- यश० सं० पू०, पृ० १६ सं० टी० ८५. निरुधाना चोरकम्पोत्तालितवारबाणम् ।-- यश° उत्त०, पृ०११ ८५. वारबाणं कंचुकम् ।- वही, सं० टी०
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