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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन प्राचारांग के संस्कृत व्याख्याकार शीलांकाचार्य ने दुकूल को बंगाल में पैदा होनेवाली एक विशेष प्रकार की रूई से बननेवाला वस्त्र कहा है २५, किंतु यह व्याख्या बारहवीं शती की होने से विश्वसनीय नहीं है। निशीथ के चूर्णिकार ने दुकूल को दुकूल नामक वृक्ष की छाल को कूट कर उसके रेशे से बनाया जानेवाला वन कहा है।३६ ___ अर्थशास्त्र से दुकूल के विषय में कुछ और भी जानकारी मिलती है। इसके अनुसार बंगाल में बननेवाला दुकूल सफेद और मुलायम होता था। पौंड्र देश के दुकूल गहरे नीले और चिकने होते थे तथा सुवर्णकुड्या के दुकूल ललाई लिए होते थे। ७ कौटिल्य ने यह भी लिखा है कि दुकूल तीन तरह से बुना जाता था तथा बुनाई के अनुसार उसके एकांशुक, अध्य(शुक, द्वयंशुक तथा त्र्यंशुक ये चार भेद होते थे ।३८ ___डाँ० अग्रवाल ने हर्षचरित में दुकूल के विषय में एक प्रश्न उठाया है ।
उन्होंने लिखा है कि 'सम्भवतः कूल का अर्थ देश्य या आदिम भाषा में कपड़ा था, जिससे कोलिक (हि• कोली) शब्द बना । दोहरी चादर या थानके रूप में विक्रयार्थ
आने के कारण यह द्विकूल या दुकूल कहलाने लगा।३९ साहित्यिक सामग्री की साक्षीपूर्वक इस विषय पर विचार करने से उनके इस कथन का समर्थन होता है।
सोमदेव ने तीन बार सम्राट यशोधर को दुकूल पहनने का उल्लेख किया है। वसन्तोत्सव के समय तो निश्चित रूप से सम्राट ने दो दुकूल धारण किये थे, क्योंकि यहाँ पर सोमदेव ने 'दुकूले' इस द्विवचन का प्रयोग किया है।४०
दूसरे प्रसंग में उद्गमनीय मंगल दुकूल कहा है । ४१ अमरकोषकार ने लिखा है कि धुले हुए वस्त्रों के जोड़े को ( दो वस्त्रों को ) उद्गमनीय कहते हैं । ४२ इससे
३५. दुकलं गौण विषयविशिष्टकार्पासिकम् ।-आचारांग २, वस्त्र० सू० ३६८ सं०टी० ३६. दुगल्लो रुक्खो तस्स वागो धेत्तुं उदूखले कुट्टिज्जति पाणिएण ताव जाव झूसी
भूतो ताहे कज्जति एतेषु दुगुल्लो।-निशीथ ७, १०-१२ ३७. वांगकं श्वेतं स्निग्धं दुकलं, पौण्डूकं श्याम मणिस्निग्धं, सौवर्णकुड्यक सूर्यवर्णम् ।
-अर्थशास्त्र, २०११ १८. मणिस्निग्धोदकवानं चतुर श्रवान व्यामिश्रवानं च । एतेषामेकांशुकमध्यर्धद्विक्रि
चतुरंशुकमिति ।-वही, २०११ ३६. अग्रवाल-हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ७६ ४०. गोरोचनापिंजरिते दुकृले ।-यश० सं० पू०, पृ० ५६२ ४१. गृहीतोद्गमनीयमंगलदुकूल: ।-यश° उत्त० पृ० ८५ ४२. तत्स्यादुद्गमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोर्युगम् ।-अमरकोष २, ६, ११३
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