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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १२५ अलंकारों में हाथियों की पंक्ति, पेड़-पौधे, मनुष्य - प्राकृतियाँ और चिड़ियाँ भी होती हैं । २५ रल्लिका - रल्लिका का अर्थ श्रुतसागर ने रक्त कंबल किया है । २६ रल्लक एक प्रकार का मृग या जंगली भेड़ होती थी, जिसके ऊन से यह वस्त्र बनता था । सोमदेव ने जंगल का वर्णन करते हुए सेही के द्वारा परेशान किये जाते रल्लकों का उल्लेख किया है । २७ रल्लिका या रल्लक को अमरकोषकार ने भी एक प्रकार का कम्बल कहा है | २८ जिस समय युवांग च्वांग भारत आया उस समय भारतवर्ष में इस वस्त्र का खूब प्रचार था । उसने अपने यात्रा विवरण में होलाली अर्थात् रल्लक का उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि यह वस्त्र किसी जंगली जानवर के ऊन से बनता था । यह ऊन आसानी से कत सकता था तथा इससे बने वस्त्रों का काफी मूल्य होता था । ९ सोमदेव ने एक अन्य प्रसंग पर और अधिक स्पष्ट किया है कि रल्लकों के रोमों से कम्बल बनाए जाते थे, जिनका उपयोग हेमन्त ऋतु में किया जाता था । ३० दुकूल -- सोमदेव ने दुकूल का कई बार उल्लेख किया है । राजपुर में दुकूल और अंशुक की वैजयन्तियाँ ( पताकाएँ ) लगाई गयी थीं । ३१ राज्याभिषेक के बाद सम्राट यशोधर ने धवल दुकूल धारण किये ३ २, वसन्तोत्सव के अवसर पर गोरोचना से पिंजरित दुकूल धारण किये ३३ तथा सभामंडप ( दरबार ) में जाते समय उद्गमनीय मंगल दुकूल पहिने । ३४ अन्य प्रसंगों में भी दुकूल के उल्लेख हैं । २५. वाट -- इंडियन आर्ट एट दी देहली एक्जिबिशन, पृ० २५६ - २६ उद्घृत, मोतीचन्द्र - भारतीय वेशभूषा, पृ० ६५ । , २६. रल्लिकाश्च रक्तादिकंबल विशेषाः । - यश० सं० पू० पृ० ३६८, सं० टी० २७ क्वचिन्निः शल्यशल्लकशलाकाजा लकील्य मानर ल्लक लोकलोकम् । - यश० उत्त० पृ० २०० २८. अमरकोश, २।६। ११६ २६. वाटर्स - युवांग वांग्स ट्रावल्स इन इंडिया, माग १, लन्दन १६०४ । प्रा० २०. उद्धृत, डॉ० मातीचन्द्र - भारतीय ३०. रल्लक रोमन्निष्पन्न कम्बललोकलीला विलासिनी वेषभूषा से । हेमने मरुति । - यश० सं० पू० ५७३ पू० ५० १६ ३१. दुकूलांशुकवैजयन्तीसंततिभिः । - यश० सं० ३२ धृतधवलदुकुलमाल्य विलेपनालंकारः । -- वही, पृ० ३२३ ३३. त्वं देव देहेऽभिनवे दधानो, गोरोचना पिंजरिते दुकले । - वही, पृ० १६२ ३४. गृहीतोद्गमनीय मंगलदुकल । वही, उत्त० पृ० ८१ ---- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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