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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
हैं । ९ यह एक रेशमी वस्त्र था। बृहत्कल्पसूत्र भाष्य में इसकी व्याख्या कोशकार नामक कीड़े से अथवा चीन जनपद के बहुत पतले रेशम से बने वस्त्र से की गयी है।२०
. चीनांशुक के अतिरिक्त चीन और वाह्नीक से भेड़ों के ऊन, पश्म ( रांकव ), रेशम (कीटज) और पट्ट (पट्टज) के बने वस्त्र आते थे। ये ठीक नाप के, खुशनुमा रंगवाले तथा स्पर्श करने में मुलायम होते थे। इन देशों से नमदे ( कुट्टीकृतं ), कमल के रंग के हजारों कपड़े, मुलायम रेशमी कपड़े तथा मेमनों की खालें भी आती थीं।२१
चित्रपटी--यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार ने चित्रपटी का अर्थ रंग-बिरंगे सूक्ष्म वस्त्र से किया है। २२ डॉ० अग्रवाल ने लिखा है कि चित्रपटी या चित्रपट वे जामदानी वस्त्र ज्ञात होते हैं, जिनमें बुनावट में ही फूल-पत्तियों की भाँत. डाल दी जाती थी। बंगाल इन वस्त्रों के लिए सदा से प्रसिद्ध रहा है। बाणभट्ट ने लिखा है कि प्राग्ज्योतिषेश्वर (आसाम) के राजा ने श्रीहर्ष को उपहार में जो बहुमूल्य वस्तुएँ भेजीं उनमें चित्रपट के तकिए भी थे, जिनमें समूर या पक्षियों के बाल या रोएँ भरे थे।२३
पटोलपटोल का अर्थ टीकाकार ने पट्टकूल वस्त्र किया है।२४ गुजरात में अभी भी पटोला नामक साड़ी बनती है तथा इसका व्यवहार होता है। इस साड़ी को लड़की का मामा विवाह के अवसर पर उसे भेंट करता है। यह साड़ी बांधनू रंगने की विधि से रंगे गये ताने-बाने से बनती है। इसकी बुनावट में सकरपारे पड़ते हैं, जिनके बीच में तिपतिए फूल होते हैं। कभी-कभी
१९. आचारांग २,१४, ६ । भगवती ९,३३,६ । अनुयोगद्वार ३६, निशीथ ७,११।
प्रश्नव्याकरण ४,४ इत्यादि। २०. कोशिकाराख्यः कृमिः तस्माज्जातम् , अथवा चीनानाम् जनपदः तत्र यः श्लक्षण
तरपट: तस्माज्जातम् ।-बृहत्कल्प० ४,३६६२ ।। २१. प्रमाणरागस्पर्शाढ्यं वाल्हीचीनसमुद्भवम् । और्ण च राकव चैव कीटजं
पट्टजं तथा। कुट्टोकृतं तथैवात्र कमलाभं सहस्रशः । श्लक्ष्णं वस्त्रमकासमाविकं मृदुचा जिनम् ॥
-महामा० सभा पर्व, ५११२७ २२. चित्रा नानाप्रकारा याः पश्यः सूक्ष्मवस्त्राणि ।-यश०सं० पृ०, पृ० २६८, सं०टी० २३. अग्रवाल-हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १६८ २४. पटोलानि च पट्टकलवस्त्राणि-यश० सं० पू० पृ० ३६८
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