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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन नेत्र एक प्रकार का महीन रेशमी वस्त्र था। यह कई रंगों का होता था। इसके थानों में से काटकर तरह-तरह के वस्त्र बना लिये जाते थे। यह चीन देश । से भारत में आता था। प्राचीन भारतीय साहित्य में नेत्र का उल्लेख सबसे पहले कालिदास ने किया है ।३ बारणभट्ट ने नेत्र के बने विभिन्न प्रकार के वस्त्रों का कई बार उल्लेख किया है। मालती धुले हुए सफेद नेत्र का बना केंचुली की तरह हलका कंचुक पहने थी। हर्ष निर्मल जल से धुले हुए नेत्रसूत्र की पट्टी बाँधे हुए एक अधोवस्त्र पहने थे।५
बाण ने एक अन्य प्रसंग पर अन्य वस्त्रों के साथ नेत्र के लिए भी अनेक विशेषण दिये हैं..-साँप की केंचुली की तरह महीन, कोमल केले के गाभे की तरह मुलायम, फूक से उड़ जाने योग्य हलके तथा केवल स्पर्श से ज्ञात होने योग्य । ६ बाण ने लिखा है कि इन वस्त्रों के सम्मिलित आच्छादन से हजार-हजार इन्द्र-धनुषों जैसी कान्ति निकल रही थी। इस उल्लेख से रंगीन नेत्र का पता लगता है। बाण ने छापेदार नेत्र के भी उल्लेख किये हैं। राज्यश्री के विवाह के अवसर पर खम्भों पर छापेदार नेत्र लपेटा गया था। एक अन्य स्थान पर छापेदार नेत्र के बने सूथनों का उल्लेख है । ९ सम्भवतः नेत्र की बुनावट में ही फूलपत्तियों की भाँत डाल दी जाती थी।
उद्योतनसूरि (७७९ ई०) कृत कुवलयमाला में एक वणिक् कहता है कि वह महिस और गवय लेकर चीन गया और वहाँ से गंगापटी तथा नेत्र वस्त्र लाया।
वर्णरत्नाकर में चौदह प्रकार के नेत्रों का उल्लेख है ।११
३. नेत्रक्रमेणोपरुरोध सूर्यम् ।-रघुवंश, ७।२९ ४. धौतधवल नेत्रनिर्मितेन निर्मोकलघुतरेणाप्रपदोनकंचुकेन ।-हर्षचरित, पृ० ३१ २५. विमलपयोधौतेन नेत्रसूत्र निवेशशोभिनाधरवाससा।-वह', पृ०७२ ६. नेत्रैश्च निर्मोक निभैः, अकठोररम्भागर्भकोमलैः, निश्वासहाय:, स्पर्शानुमेयैः
वासोभिः।-वही, पृ०१४३ । ७. स्फुरद्भिरिन्द्रायुधसहस्रैरिव संछादितम् । -हर्षचरित, पृ० १४३ । ८. उच्चित्रनेत्रपटवेष्ट्यमानैश्च स्तम्भैः ।-वही, १४३ 8. उच्चित्रनेत्रसुकुमारस्वस्थानस्थगितजंघाकाण्डैः । वही, पृ० २०६ १० अहं चीण-महा चीणे सु गो महिस-गवले धेत्तण, तत्थ गगावडिओ णेत्त पट्टाइयं
घेत्तण लद्धलाभो णियत्तो । -कुवलयमाला कहा, पृ. ६६ 1. हरिणा, वगना, नखी, सर्वाङ्ग, गरु. शुचीन, राजन, पंचरंग, नील, हरित, पोत,
लोहित, चित्रवर्ण, एवम्विध चतुर्दश जाति नेत देषु ।-वर्णरत्नाकर, पृ० २२
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