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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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जीवन
कलि-विभीतक अर्क-पाक अरिभेद-विट्खदिर शिवप्रिय-धतूरा *गायत्री-ख दिर ग्रन्थिपणे : ७-गाथियन
पारद रस५८-पारा आयुर्वेदविशेषज्ञ आचार्य
यशस्तिलक में आयुर्वेदविशेषज्ञ आचार्यों में काशिराज, चारायण, निमि धिषण तथा चरक का उल्लेख है ।५९
काशिराज–काशिराज को श्रुतसागर ने धन्वन्तरि कहा है।६०
यह उल्लेख विशेष महत्व का है। निर्णयसागर द्वारा प्रकाशित सुश्रुतसंहिता की संस्कृत भूमिका में इस पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है । अनपेक्षित होने से उसे यहाँ पुनरुक्त नहीं किया गया ।
निमि-इनमें संभवतया निमि सर्वाधिक प्राचीन हैं। इनका कोई ग्रन्थ तो उपलब्ध नहीं होता, किन्तु अन्य ग्रन्थों में उल्लेख आये हैं। चरक संहिता में निमि को विदेहराज कहा है।६१ वाग्भट ने अष्टांगहृदय में, क्षीरस्वामी ने अमरकोष की टीका (२।५।२८) में तथा ढल्हण ने सुश्रुतसंहिता की टीका में निमि का उल्लेख किया है। निर्णयसागर द्वारा प्रकाशित इन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि निमि के उल्लेख अन्य ग्रन्थों में भी मिलते हैं।
चारायण—चारायण का आयुर्वेदाचार्य के रूप में अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता। वात्स्यायन ने कामसूत्र (१११।१२) में चारायण को वाभ्रव्य पांचालकृत कामसूत्र के एक अध्याय को स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में रचने वाला कहा है। सोमदेव ने चारायण का जो उल्लेख किया है, वह भी वात्स्यायन के कामसूत्र में
१७. पृ. ४७०, पू०, विवेचन के लिए देखें-के. के. हन्दिको, यशस्तिलक एंड
इंडियन कल्चर, पृ० ९२, फुटनोट । ५८. पृ० १०२, पृ० २६. पृ०२३७, ५०६ सं० पू०, पृ. २६७ उत्त. ६०. काशिराजो धन्वन्तरिः।-पृ० २३७ सं० टी० ६१. सप्तरसा इति निमिवैदेहः । - सूत्रस्थान, १९ २६
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