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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन ... भारतीय वैद्यक में गुल्म के पाँच भेद बताए मये हैं—(१) वातज, (२) पित्तज, . (३) कफज, (४) त्रिदोषज तथा (५) रक्तज ।५२ .
पाश्चात्य वैद्यक में गुल्म को अवडामिनल ट्यूमर कहते हैं। ट्यूमर प्रायः दो प्रकार के होते हैं—(१) सामान्य और (२) घातक । इनके अनेक अवान्तर भेद होते हैं ।५३
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. सितश्वित-सफेद कुष्ट जिससे पीब बहती रहती है तथा अत्यन्त दुर्गन्ध आती है उसे यशस्तिनक में सितश्वित कहा है। अमृतमति को यह भयंकर रोग हो गया था। परिवार के लोग भी नाक बन्द करके उसके पास आते थे । ५४ सोमदेव ने इसका दूसरा नाम साधारणतया कुष्ट भी दिया है । ५५
औषधियाँ-यशस्तिलक में अनेक प्रकार की औषधियों के उल्लेख हैं। शिखण्डिताण्डवमण्डन नामक वन के विस्तृत वर्णन में ही लगभग २० अौषधियों के नाम गिनाए हैं। यह वर्णन किसी आयुर्वेदिक उद्यान के वर्णन से कम नहीं है । औषधियों की जानकारी इस प्रकार है
*मागधी५६-छोटी पीपल अमृता-गुरुचि सोम, विजया-हरड़ जम्बूक सुदर्शना मरुद्भव अर्जुन अभीरु-शतावरी लक्ष्मी-मरण्डशृगी वृती तपस्विनी-मुण्डी कल्लार प्रादि चन्द्रलेखा-वाकुची १२. वही, श्लोक' २३. वही, श्लोक ५ की व्याख्या ५४. संपन्नसिनश्चितगात्रीमनवरतदरदेहव्वास्वादासीद-मन्दमक्षिकाक्षेपक्षोभपात्रीमति
पूतिपूपिहितनासिकसविधसंचरितपरिवाराम् 1-पृ० २२३ उत्त. .५५. सकलकुष्ठाधिष्ठानम् । -वही ५६. चिह्नान्तर्गत औषधियाँ, पृ० ११४-१६७ उत्त.
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